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३८३-३८६ मिश्र आदि प्रमत्तविरत पर्यन्त चार गुणस्थानों की बंधयोग्य प्रकृतियों की संख्या और कारण
३८४ गाथा ५८
३८६-३८८ अप्रमत्तसंयत गुणस्थान की बंधयोग्य प्रकृतियाँ और उसका कारण
३८६ अपूर्वकरण गुणस्थान की बन्धयोग्य प्रकृतियों की संख्या व कारण
३८० गाथा ५६
३८८-३९२ अनिवृत्तिबादर से लेकर सयोगिकेवली गुणस्थान तक की बन्धयोग्य प्रकृतियां और उनका कारण गुणस्थानों में बन्ध प्रकृतियों का दर्शक विवरण
३६१ गाथा ६०
३६२-३६३ मार्गणाओं में बन्धस्वामित्व को जानने की सूचना ३९२ गाथा ६१
३६३-३६५ गतियों में प्रकृतियों की सत्ता का विचार गाथा ६२
३६५-४२० उपशम श्रेणी के विचार का प्रारम्भ
३६५ अनन्तानुबन्धी चतुष्क की उपशम विधि अनन्तानुबन्धी चतुष्क की विसंयोजना विधि दर्शनमोहनीय की उपशमना विधि चारित्रमोहनीय की उपशमना विधि
४०६ उपशमश्रेणि से च्युत होकर जीव किस-किस गुणस्थान को प्राप्त होता है, इसका विचार एक भव में कितनी बार उपशमश्रेणि पर आरोहण हो सकता है
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