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सप्ततिका प्रकरण में १२ भंग और एक प्रकृतिक उदयस्थान में ५ भंग होते हैं, जिनका कुल जोड़ १७ हुआ। इन्हें वहाँ संभव उपयोगों की संख्या ७ से गुणित कर देने पर ११९ होते हैं। जिनको पूर्व राशि ७५८४ में मिला देने पर कुल भंग ७७०३ होते हैं। कहा भी है--
उबयाणुवओगेसु सगसरिसया तिउत्सरा होति ।' अर्थात्-मोहनीय के उदयस्थान विकल्पों को वहाँ संभव उपयोगों से गुणित करने पर उनका कुल प्रमाण ७७०३ होता है। ... किन्तु मिश्र गुणस्थान में उपयोगों के बारे में एक मत यह भी है कि सम्यमिथ्यादृष्टि गुणस्थान में पांच के बजाय अवधि दर्शन सहित छह उपयोग पाये जाते हैं। अतः इस मत को स्वीकार करने पर मिश्र गुणस्थान की ४ चौबीसी को ६ से गुणित करने से २४ होते हैं और इन २४ को २४ से गुणित करने पर ५७६ होते हैं अर्थात् इस गुणस्थान में ४८० की बजाय ६६ भंग और बढ़ जाते हैं। अत: पूर्व बताये गये ७७०३ भंगों में ६६ को जोड़ने पर कुल भंगों की संख्या ७७६६ प्राप्त होती है। इस प्रकार ये उपयोग२-गुणित उदयस्थान भंग जानना चाहिये।
उपयोगों की अपेक्षा उदयविकल्पों का विवरण इस प्रकार है
गुणस्थान
उपयोग
गुणकार
गुणनफल (उदयविकल्प)
मिथ्यात्व
५
६६०
। ८४ २४
४४२४
सासादन
४८०
मिश्र ...
४- २४
१ पंचसंग्रह सप्ततिका, गा० ११८ । २ गो० कर्मकांड गा० ४६२ और ४६३ में उपयोगों की अपेक्षा उदयस्थान
७७९६ और पदवृन्द ५१०८३ बतलाये हैं। ' Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org