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________________ षष्ठ कर्मग्रन्थ २६५ इस प्रकार से योगों की अपेक्षा गुणस्थानों में मोहनीय कर्म के उदयस्थानों, भंगों और पदवृन्दों का विचार करने के बाद अब आगे उपयोगों की अपेक्षा उदयस्थानों आदि का विचार करते हैं । मिथ्यात्व और सासादन इन दो गुणस्थानों में मतिअज्ञान, श्रुतअज्ञान, विभंगज्ञान, चक्षुदर्शन और अचक्षुदर्शन, ये पांच उपयोग होते हैं । मिश्र में तीन मिश्र ज्ञान और चक्षु व अचक्षु दर्शन, इस प्रकार ये पांच उपयोग हैं । अविरत सम्यग्दृष्टि और देशविरत में आरम्भ के तीन सम्यग्ज्ञान और तीन दर्शन, ये छह उपयोग होते हैं तथा छठे प्रमत्तसंयत गुणस्थान से लेकर दसवें सूक्ष्मसंपराय गुणस्थान तक पांच गुणस्थानों में पूर्वोक्त छह तथा मनपर्यायज्ञान सहित सात उपयोग होते हैं तथा प्रत्येक गुणस्थान के उदयस्थान के भंगों का कथन पूर्व में अन्तर्भाष्य गाथा 'अट्टग चउ चउ चउरट्टगा य... के संदर्भ में किया जा चुका है । अत: जिस गुणस्थान में जितने उपयोग हों, उनसे उस गुणस्थान के उदयस्थानों को गुणित करके अनन्तर भंगों से गुणित कर देने पर उपयोगों की अपेक्षा उस गुणस्थान के कुल भंग ज्ञात हो जाते हैं । जैसे कि मिथ्यात्व और सासादन में क्रम से ८ और ४ चौबीसी तथा ५ उपयोग हैं अतः ८ + ४ = १२ को ५ से गुणित कर देने पर ६० हुए। मिश्र में ४ चौबीसी और ५ उपयोग हैं अतः ४ को ५ से गुणित करने पर २० हुए । अविरत सम्यग्दृष्टि और देशविरत गुणस्थान में आठ-आठ चौबीसी और ६ उपयोग हैं अतः ८ +८ = १६ को ६ से गुणित कर देने पर ε६ हुए। प्रमत्त, अप्रमत्त संयत और अपूर्वकरण गुणस्थान में आठ, आठ और चार चौबीसी तथा ७ उपयोग हैं, अतः ८+६+४ = २० को सात से गुणा कर देने पर १४० हुए तथा इन सबका जोड़ ६०+२०+१६+१४०=३१६ हुआ । इनमें से प्रत्येक चौबीसी में २४, २४ भंग होते हैं अतः इन ३१६ को २४ से गुणित कर देने पर कुल ३१६x२४ = ७५८४ होते हैं तथा दो प्रकृतिक उदयस्थान Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org..
SR No.001897
Book TitleKarmagrantha Part 6 Sapttika
Original Sutra AuthorDevendrasuri
AuthorShreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year1989
Total Pages584
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size8 MB
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