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________________ षष्ठ कर्म ग्रन्थ २१३ भंगों को बतलाने के बाद अब दर्शनावरण, वेदनीय, आयु और गोत्र कर्म के बंधादि स्थानों के भंगों को बतलाते हैं । तेरे नव चउ पणगं नव संतेगम्मिं भंगमेक्कारा । वेयणियाउयगोए विभज्ज मोहं परं वोच्छं ॥३५॥ शब्दार्थ - तेरे तेरह जीवस्थानों में, नव--- नौ, प्रकृतिक बंध, चउ पंणगं - चार अथवा पांच प्रकृतिक उदय, नवसंत - नौ की सत्ता, एगम्मि एक जीवस्थान में, भंगमेक्कारा - ग्यारह भंग होते हैं, वेयणियाजयगोए - वेदनीय, आयु और गोत्र कर्म में, विभज्ज - विकल्प करके, मोहं - मोहनीय कर्म के, परं- आगे, बोच्छं -कहेंगे । - गाथार्थ - तेरह जीवस्थानों में नौ प्रकृतिक बंध, चार या पाँच प्रकृतिक उदय और नौ प्रकृतिक सत्ता होती है। एक जीवस्थान में ग्यारह भंग होते हैं । वेदनीय, आयु और गोत्र कर्म में बंधादि स्थानों का विभाग करके मोहनीय कर्म के बारे में आगे कहेंगे । विशेषार्थ - गाथा में दर्शनावरण, वेदनीय, आयु और गोत्र कर्म के बंधादि स्थानों को बतला कर बाद में मोहनीय कर्म के विकल्प बतलाने का संकेत किया है । दर्शनावरण कर्म के बंधादि विकल्प इस प्रकार हैं कि आदि के तेरह जीवस्थानों में नौ प्रकृतिक बंध, चार या पाँच प्रकृतिक उदय तथा नौ प्रकृतिक सत्ता, ये दो भंग होते हैं । अर्थात् नौ प्रकृतिक बंध, चार प्रकृतिक उदय और नौ प्रकृतिक सत्ता यह एक भंग और नौ प्रकृतिक बंध, पांच प्रकृतिक उदय तथा नौ प्रकृतिक सत्ता यह दूसरा भंग, इस प्रकार आदि के तेरह जीवस्थानों में दो भंग होते हैं । इसका कारण यह है कि प्रारम्भ के तेरह जीवस्थानों में दर्शनावरण कर्म की किसी भी उत्तर प्रकृति का न तो बंधविच्छेद होता है, न उदयविच्छेद Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001897
Book TitleKarmagrantha Part 6 Sapttika
Original Sutra AuthorDevendrasuri
AuthorShreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year1989
Total Pages584
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size8 MB
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