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सप्ततिका प्रकरण पांच प्रकृतिक उदय और पांच प्रकृतिक सत्ता, इस प्रकार तीन विकल्प रूप एक भंग होता है। अनन्तर बंधविच्छेद हो जाने पर पाँच प्रकृतिक उदय और पाँच प्रकृतिक सत्ता, इस प्रकार दो विकल्प रूप एक भंग होता है.---'एक्कम्मि तिदुविगप्पो।' पाँच प्रकृतिक बंध, उदय
और सत्ता, यह तीन विकल्प सूक्ष्मसंपराय गुणस्थान तक पाये जाते हैं तथा उसके बाद बंध का विच्छेद हो जाने पर उपशान्तमोह और क्षीणमोह गुणस्थान में पाँच प्रकृतिक उदय और पाँच प्रकृतिक सत्ता, यह दो विकल्प होते हैं। क्योंकि उदय और सत्ता का युगपद् विच्छेद हो जाने से अन्य भंग सम्भव नहीं हैं।
पर्याप्त संज्ञी पंचेन्द्रिय जीवस्थान की एक और विशेषता बतलाते हैं कि 'करणं पइ एत्थ अविगप्पो' अर्थात् केवलज्ञान के प्राप्त हो जाने के बाद इस जीव को भावमन तो नहीं रहता किन्तु द्रव्यमन ही रहता है और इस अपेक्षा से उसे भी पर्याप्त संज्ञी पंचेन्द्रिय कहते हैं। चूणि में भी कहा है__मणकरणं केवलिणो वि अस्थि तेण सनिणो वुच्चंति । मणोविण्णाणं पडुच्च ते सन्निणो न हवंति।
अर्थात्-मन नामक करण केवली के भी है, इसलिये वे संज्ञी कहलाते हैं किन्तु वे मानसिक ज्ञान की अपेक्षा संज्ञी नहीं होते हैं ।
ऐसे सयोगि और अयोगि केवली जो द्रव्यमन के संयोग से पर्याप्त संज्ञी पंचेन्द्रिय हैं, उनके तीन विकल्प रूप और दो विकल्प रूप भंग नहीं होते हैं। अर्थात केवल द्रव्यमन की अपेक्षा जो जीव पर्याप्त संज्ञी पंचेन्द्रिय कहलाते हैं, उनके ज्ञानावरण और अन्तराय कर्म के बंध, उदय और सत्व की अपेक्षा कोई भंग नहीं है क्योंकि इन कर्मों के बंध, उदय और सत्ता का विच्छेद केवली होने से पहले ही हो जाता है। ___इस प्रकार से जीवस्थानों में ज्ञानावरण और अन्तराय कर्म के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org