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षष्ठ कर्म ग्रन्थ
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शरीरस्थ तिर्यच पंचेन्द्रिय के २६ प्रकृतिक उदयस्थान होता है । उक्त २१ प्रकृतिक उदयस्थान में औदारिक शरीर, औदारिक अंगोपांग, छह संस्थानों में से कोई एक संस्थान, छह संहननों में से कोई एक संहनन, उपघात और प्रत्येक, इन छह प्रकृतियों को मिलाने तथा तिर्यंचानुपूर्वी के निकाल देने पर यह २६ प्रकृतिक उदयस्थान बनता है ।
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इस २६ प्रकृतिक उदयस्थान के भंग २८६ होते हैं। क्योंकि पर्याप्त के छह संस्थान, छह संहनन और सुभग आदि तीन युगलों की संख्या को परस्पर गुणित करने पर ६४६x२x२x२= २८८ भंग होते हैं तथा अपर्याप्त के हुडसंस्थान, सेवार्त संहनन, दुर्भग, अनादेय और अयशःकीर्ति का ही उदय होता है अतः यह एक भंग हुआ । इस प्रकार २६ प्रकृतिक उदयस्थान के कुल २८६ भङ्ग होते हैं ।
शरीर पर्याप्ति से पर्याप्त हुए जीव के इस छब्बीस प्रकृतिक उदयस्थान में पराघात और प्रशस्त व अप्रशस्त विहायोगति में से कोई एक इस प्रकार इन दो प्रकृतियों के मिलाने पर २८ प्रकृतिक उदयस्थान होता है । इसके भङ्ग ५७६ होते हैं। क्योंकि पूर्व में पर्याप्त के जो २८८ भङ्ग बतलाये हैं उनको प्रशस्त और अप्रशस्त विहायोगति से गुणित करने पर २८८x२= ५७६ होते हैं ।
उक्त २८ प्रकृतिक उदयस्थान में उच्छ् वास को मिला देने पर २६ प्रकृतिक उदयस्थान होता है । इसके भी पहले के समान ५७६ भंग होते हैं । अथवा शरीर पर्याप्ति से पर्याप्त हुए जीव के उच्छवास का उदय नहीं होता है, इसलिए उसके स्थान पर उद्योत को मिलाने पर भी २६ प्रकृतिक उदयस्थान होता है। इसके भी ५७६ भंग होते हैं । इस प्रकार २६ प्रकृतिक उदयस्थान के कुल भंग ५७६ + ५७६ = ११५२ होते हैं ।
उक्त २६ प्रकृतिक उदयस्थान में भाषा पर्याप्ति से पर्याप्त हुए
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