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सप्ततिका प्रकरण
जीव के सुस्वर और दुःस्वर में से किसी एक को मिलाने पर ३० प्रकतिक उदयस्थान होता है। इसके ११५२ भंग होते हैं। क्योंकि पहले २६ प्रकृतिक स्थान के उच्छ वास की अपेक्षा ५७६ भंग बतलाये हैं, उन्हें स्वरद्विक से गुणित करने पर ११५२ भंग होते हैं अथवा प्राणापान पर्याप्ति से पर्याप्त हुए जीव के जो २६ प्रकृतिक उदयस्थान बतलाया है, उसमें उद्योत को मिलाने पर ३० प्रकृतिक उदयस्थान होता है । इसके पहले की तरह ५७६ भंग होते हैं। इस प्रकार ३० प्रकृतिक उदयस्थान के कुल भङ्ग १७२८ प्राप्त होते हैं।
स्वर सहित ३० प्रकृतिक उदयस्थान में उद्योत नाम को मिला देने पर ३१ प्रकृतिक उदयस्थान होता है । इसके कुल भंग ११५२ होते हैं । क्योंकि स्वर प्रकृति सहित ३० प्रकृतिक उदयस्थान के जो ११५२ भंग कहे हैं, वे ही यहाँ प्राप्त होते हैं।
इस प्रकार सामान्य तिर्यंच पंचेन्द्रिय के छह उदयस्थान और उनके कुल भङ्गह+२८६ + ५७६+ ११५२+१७२८+ ११५२= ४६०६ होते हैं।
अब वैक्रिय शरीर करने वाले तिर्यंच पंचेन्द्रिय की अपेक्षा बंधस्थान और उनके भङ्गों को बतलाते हैं। __ वैक्रिय शरीर करने वाले तिर्यंच पंचेन्द्रियों के २५, २७, २८, २९ और ३० प्रकृतिक, ये पाँच उदयस्थान होते हैं।
पहले जो तिर्यंच पंचेन्द्रिय के २१ प्रकृतिक उदयस्थान बतलाया है, उसमें वैक्रिय शरीर, वैक्रिय अंगोपांग, समचतुरस्र संस्थान, उपधात और प्रत्येक इन पाँच प्रकृतियों को मिलाने तथा तिर्यंचानुपूर्वी के निकाल देने पर पच्चीस प्रकृतिक उदयस्थान होता है। इस २५ प्रकतिक उदयस्थान में सुभग और दुर्भग में से किसी एक का, आदेय और अनादेय में से किसी एक का तथा यशःकीति और अयश:कीर्ति
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