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________________ सप्ततिका प्रकरण इन छह उदयस्थानों में से २१ प्रकृतिक उदयस्थान नामकर्म की बारह ध्रुवोदया प्रकृतियों के साथ तिर्यंचगति, तिर्यंचानुपूर्वी, पंचेन्द्रिय जाति, त्रस, बादर, पर्याप्त और अपर्याप्त में से कोई एक, सुभम और दुर्भग में से कोई एक, आदेय और अनादेय में से कोई एक, यश कीति और अयश कीति में से कोई एक, इन नौ प्रकृतियों को मिलाने से बनता है । यह उदयस्थान अपान्तराल में विद्यमान तिर्यंच पंचेन्द्रिय के होता है। इसके नौ भंग होते हैं। क्योंकि पर्याप्त नामकर्म के उदय में सुभग और दुर्भग में से किसी एक का, आदेय और अनादेय में से किसी एक का तथा यशःकीति और अयशःकीर्ति में से किसी एक का उदय होने से २x२x२=८ भंग हुए तथा अपर्याप्त नामकर्म के उदय में दुर्भग, अनादेय और अयशःकीर्ति, इन तीन अशुभ प्रकृतियों का ही उदय होने से एक भंग होता है। इस प्रकार २१ प्रकृतिक उदयस्थान में कुल नौ भंग होते हैं । किन्हीं आचार्यों का यह मत है कि सुभग के साथ आदेय का और दुर्भग के साथ अनादेय का ही उदय होता है। अत: इस मत के अनु. सार पर्याप्त नामकर्म के उदय में इन दोनों युगलों को यश:कीर्ति और अयश:कीर्ति, इन दो प्रकृतियों से गुणित कर देने पर चार भंग होते हैं तथा अपर्याप्त का एक, इस प्रकार २१ प्रकृतिक उदयस्थान में कुल पांच भंग होते हैं। इसी प्रकार मतान्तर से आगे के उदयस्थानों में भी मंगों की विषमता समझना चाहिये ।' १ अपरे पुनराहः-सुभगाऽऽदेये युगपदुदयमायात: दुर्भगाऽनादेये च, तत पर्याप्तकस्य सुभगाऽऽदेययुगलदुर्भ गाऽनादेययुगलाभ्यां यशः कीति-अयशःकीर्ति भ्यां च चत्वारो भंगा: अपर्याप्तकस्य त्वेक इति, सर्वसंख्यया पंच । एवमुत्तर त्रापि मतान्तरेण मंगवैषम्यं स्वधिया परिभावनीयम् । -सप्ततिका प्रकरण टीका, पृ. १८३ www.jainelibrary.org Jain Education International For Private & Personal Use Only
SR No.001897
Book TitleKarmagrantha Part 6 Sapttika
Original Sutra AuthorDevendrasuri
AuthorShreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year1989
Total Pages584
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size8 MB
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