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________________ वष्ठ कर्मग्रन्थ १६५ उसके स्थान पर उद्योत का उदय हो गया तो भी ३० प्रकृतिक उदयस्थान होता है । यहाँ यशःकीर्ति और अयशः कीर्ति के विकल्प से दो ही भंग होते हैं। इस प्रकार तीस प्रकृतिक उदयस्थान में छह भंग होते हैं। अनन्तर स्वर सहित ३० प्रकृतिक उदयस्थान में उद्योत के मिलाने इकतीस प्रकृतिक उदयस्थान होता है । यहाँ सुस्वर और दुःस्वर तथा यश कीर्ति और अयशःकीर्ति के विकल्प से चार भंग होते हैं । इस प्रकार द्वन्द्रिय जीवों के छह उदयस्थानों (२१, २६, २८, २९, १० और ३१ प्रकृतिक) में क्रमश: ३+३+२+४+६+४ कुल २२ रंग होते हैं । इसी प्रकार से त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय जीवों में से त्येक के छह-छह उदयस्थान और उनके भंग घटित कर लेना हिये । अर्थात् द्वन्द्रिय की तरह ही त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय जीवों भी प्रकृतिक उदयस्थान तथा उनमें से प्रत्येक के भंग समझना हिये, लेकिन इतनी विशेषता कर लेना चाहिये कि द्वीन्द्रिय जाति स्थान पर त्रीन्द्रिय के लिये त्रीन्द्रिय जाति और चतुरिन्द्रिय के लये चतुरिन्द्रिय जाति का उल्लेख कर लेवें । कुल मिलाकर विकलत्रिकों के ६६ भंग होते हैं । कहा भी है तिग तिग दुग चऊ छ च्च विगलाण छसट्ठि होइ तिन्हं पि । अर्थात् द्वीन्द्रिय आदि में से प्रत्येक के २१, २६, २८, २९, ३० और ३१ प्रकृतिक ये छह उदयस्थान हैं और उनके क्रमश: ३, ३, २, , ६ और ४ भंग होते हैं, जो मिलकर २२ हैं और तीनों के मिलाकर कुल २२३ = ६६ भंग होते हैं । अब तिर्यच पंचेन्द्रियों के उदयस्थानों को बतलाते हैं । तियंच चेन्द्रियों के २१, २६, २८, २९, ३० और ३१ प्रकृतिक, ये छह उदयथान होते हैं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001897
Book TitleKarmagrantha Part 6 Sapttika
Original Sutra AuthorDevendrasuri
AuthorShreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year1989
Total Pages584
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size8 MB
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