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________________ १६४ सप्ततिका प्रकरण के एक अयश:कीति का उदय होता है, अतः एक भंग हुआ तथा पर्याप्त के यशःकीति और अयश:कीति के विकल्प से इन दोनों का उदय होत है अत: दो भंग हुए। इस प्रकार इक्कीस प्रकृतिक उदयस्थान में कुल तीन भंग हुए। ___ इस इक्कीस प्रकृतिक उदयस्थान में औदारिक शरीर, औदारिव अंगोपांग, हुंडसंस्थान सेवार्तसंहनन, उपघात और प्रत्येक इन छह प्रकृतियों को मिलाने और तिर्यंचानुपूर्वी को कम करने पर शरीरस्थ द्वीन्द्रिय जीव के छब्बीस प्रकृतिक उदयस्थान होता है। यहाँ मैं इक्कीस प्रकृतिक उदयस्थान के भंगों के समान तीन भंग होते हैं। - छब्बीस प्रकतिक उदयस्थान में शरीर पर्याप्ति से पर्याप्त हा द्वीन्द्रिय जीव के अप्रशस्त विहायोगति और पराघात इन दो प्रकृतिय के मिला देने पर २८ प्रकृतिक उदयस्थान होता है । यहाँ यश:कीर्ति और अयशःकीर्ति की अपेक्षा दो भंग होते हैं। इसके अपर्याप्त नाम का उदय न होने से उसकी अपेक्षा भंग नहीं कहे हैं। अनन्तर श्वासोच्छ वास पर्याप्ति से पर्याप्त होने पर पूर्वोक्त २८ प्रकृतिक उदयस्थान में उच्छवास प्रकृतिक के मिलाने पर २६ प्रकृतिक उदयस्थान होता है। यहाँ भी यशःकीति और अयशःकीर्ति की अपेक्षा दो भंग होते हैं अथवा शरीर पर्याप्ति से पर्याप्त हुए जीव के उद्योत का उदय होने पर उच्छ वास के बिना २६ प्रकृतिक उदयस्थान होता है। यहाँ भी यश:कीर्ति और अयशःकीर्ति की अपेक्षा दो भंग हो जाते हैं। इस प्रकार २६ प्रकृतिक उदयस्थान में कुल चार भंग होते हैं। भाषा पर्याप्ति से पर्याप्त हुए जीव के उच्छ वास सहित २६ प्रकृ. तियों में सुस्वर और दुःस्वर इनमें से कोई एक के मिला देने पर ३० प्रकृतिक उदयस्थान होता है । यहाँ पर सुस्वर और दुःस्वर तथा यश:कीति और अयशःकीति के विकल्प से चार भंग होते हैं अथवा प्राणा पान पर्याप्ति से पर्याप्त हुए जीव के स्वर का उदय न होकर यदि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001897
Book TitleKarmagrantha Part 6 Sapttika
Original Sutra AuthorDevendrasuri
AuthorShreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year1989
Total Pages584
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size8 MB
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