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________________ ११० सप्ततिका प्रकरण का में दस एक्कग छक्केक्कारस दस सत्त चउक्क एक्कगा चेव । एए चउवीसगया चउवीस दुगेक्कमिक्कारा ॥१८॥ शब्दार्थ-एक्कग-एक, छक्केक्कारस-छह, ग्यारह, दसदस, सत्त-सात, चउक्क-चार, एक्कगा-एक, चेव-निश्चय से, एए-ये भंग, चउवीसगया-चौबीस की संख्या वाले होते हैं, चउवीस-चौबीस, दुग-दो के उदय होने पर, इक्कमिक्कारा--एक के उदय में ग्यारह भंग । गाथार्थ--दस प्रकृतिक आदि उदयस्थानों में क्रम से एक, छह, ग्यारह, दस, सात, चार और एक, इतने चौबीस विकल्प रूप भंग होते हैं तथा दो प्रकृतिक. उदयस्थान में चौबीस और एक प्रकृतिक उदयस्थान में ग्यारह भंग होते हैं। विशेषार्थ-गाथा में दस प्रकृतिक आदि प्रत्येक उदयस्थानों में चौबीस विकल्प रूप भंगों की संख्या बतलाई है । यद्यपि पहले दस प्रकृतिक आदि उदयस्थानों में कहाँ कितनी भंगों की चौबीसी होती हैं, बतला आये हैं, लेकिन यहाँ उनकी कुल (सम्पूर्ण) संख्या इस कारण बतलाई है कि जिससे यह ज्ञात हो जाता है कि मोहनीय कर्म के सब उदयस्थानों में सब भंगों की चौबीसी कितनी हैं और फुटकर भंग कितने होते हैं। ___ गाथा में बताई गई भंगों की चौबीसी की संख्या का उदयस्थानों के साथ यथासंख्य समायोजन करना चाहिये। जैसे दस के उदय में एक चौबीसी, नौ के उदय में छह चौबीसी आदि । इसका स्पष्टीकरण नीचे करते हैं। दस प्रकृतिक उदयस्थान में भंगों की एक चौबीसी होती है'एक्कग' । इसका कारण यह है कि दस प्रकृतिक उदयस्थान में प्रकृतिविकल्प नहीं होते हैं। इसीलिये एक चौबीसी बतलाई है। बतलाई है । सी होती हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001897
Book TitleKarmagrantha Part 6 Sapttika
Original Sutra AuthorDevendrasuri
AuthorShreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year1989
Total Pages584
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size8 MB
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