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________________ षष्ठ कर्मग्रन्ध्र १०६ संज्वलन मान आदि तीनों में से किसी एक प्रकृति का उदय होता है, ऐसा कहना चाहिए। संज्वलन मान के बन्धविच्छेद हो जाने पर दो प्रकृतिक बन्ध और एक प्रकृतिक उदय होता है। किन्तु वह उदय संज्वलन माया और लोभ में से किसी एक का होता है, अत: यहाँ दो भंग प्राप्त होते हैं। संज्वलन माया के बन्धविच्छेद हो जाने पर एक संज्वलन लोभ का बन्ध होता है और उसी का उदय । यह एक प्रकृतिक बन्ध और उदयस्थान है। अत: यहाँ उसमें एक भंग होता है। यद्यपि चार प्रकृतिक बन्धस्थान आदि में संज्वलन क्रोध आदि का उदय होता है, अत: भंगों में कोई विशेषता उत्पन्न नहीं होती है, फिर भी बन्धस्थानों के भेद से उनमें भेद मानकर पृथक-पृथक कथन किया गया है। __इसी प्रकार से बन्ध के अभाव में भी सूक्ष्मसंपराय गुणस्थान में . मोहनीय कर्म की एक प्रकृति का उदय समझना चाहिये.---'बंधोवरमे वि तहा' इसलिये एक भंग यह हुआ। इस प्रकार चार प्रकृतिक बन्धस्थान आदि में कुल भंग ४+३+२+१+१=११ हुए। अनन्तर सूक्ष्मसंपराय गुणस्थान के अन्त में मोहनीय का उदयविच्छेद हो जाने पर भी उपशान्तमोह गुणस्थान में उसका सत्व पाया जाता है। यहाँ बन्धस्थान और “उदयस्थानों के परस्पर संवेध का विचार किया जा रहा है, जिससे गाथा में सत्वस्थान के उल्लेख की आवश्यकता नहीं थी, फिर भी प्रसंगवश यहाँ उसका भी संकेत किया गया है-'उदयाभावे वि वा होज्जा'-मोहनीय कर्म की सत्ता विकल्प से होती है। अब आगे की गाथा में दस से लेकर एक पर्यन्त उदयस्थानों में जितने भंग सम्भव हैं, उनका निर्देश करते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001897
Book TitleKarmagrantha Part 6 Sapttika
Original Sutra AuthorDevendrasuri
AuthorShreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year1989
Total Pages584
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size8 MB
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