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शतक
किसी-किसी को बंधती है । इसीलिये अप्रशस्त और प्रशस्त प्रकृतियों में प्रधान प्रकृतियों के गुणस्थानों का विवेचन किया है। अब आगे घाति और अघाति प्रकृतियों की संख्या बतलाते हैं। घाति-अघाति प्रकृतियाँ
केवलजुयलावरणा पणनिद्दा बारसाइमकसाया। मिच्छ ति सवघाइ, चउणाणतिदसंणावरणा ॥१३॥ सजलण नोकसाया विग्धं इय देसघाइय अघाई। पत्त यतणुढाऊ तसवीसा गोयदुग वन्ना ॥१४॥
शब्दार्थ- केवलजुयल- केवलहिक -- केवलज्ञान, केवल दर्शन, आवरणा - आवरण, पण -- पांच, निद्दा - निद्रायें, बारस-बारह, आइमकसाया-आदि की कषायें, मिच्छं-मिथ्यात्व, ति-इस प्रकार, सम्वघाइ-सर्वघाति, चउ- चार, णाण-ज्ञान, तिदसणतीन दर्शन, आवरणा-आवरण ।
संजलण संज्वलन, नोकसाया--नो कषायें, विग्छ - पांच अंतराय, इय -- ये, देसघाइ देशघाति य—और, अघाइ अघाति पत्ते यतणुट्ठ-प्रत्येक आदि आठ व शरीर आदि आठ प्रकृति आऊ - आयु, तसवीसा-त्रसवीशक, गोयदुग– गोत्रद्विक, वेदनीयद्विक, वन्ना- वर्णचतुष्क।
गाथार्थ केवल द्विक आवरण, पांच निद्रायें, आदि की बारह कषाय और मिथ्यात्व ये सर्वघाति प्रकृतियां हैं। चार ज्ञानावरण, तीन दर्शनावरण तथा --
संज्वलन कषाय चतुष्क, नौ नो कषायें और पांच अंतराय ये देशघाती प्रकृतियां जानना चाहिये । आठ प्रत्येक
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