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________________ पंचम कर्मग्रन्थ गृहीतानामपि दलिकानां निक्षेपविधिद्रष्टव्यः । प्रथमसमयादारम्य गुणश्रेणिचरमममयं यावद् मसंख्येय गुणं द्रष्टव्यम् । उक्तं च--- ३४७. किञ्च गुणश्रेणिरचनाय गृह्यमाणं दलिकं यथोत्तर दलियं तु गिण्हमाणो पढमे समयम्मि थोवयं गिरहे । वरिल्लठि हितो वियम्मि असंखगुणियं तु ॥ गिण्हइ समए दलियं तइए समए असंखगुणियं तु । एवं समए समए जा चरिमो अंतसमओत्ति || इहान्तमुहूर्तप्रमाणो निक्षेपकालो, दलरचना रूपगुणश्रेणिकालश्चापूर्वकरणानिवृत्तिकरणाद्धाद्विकात् किञ्चिदधिको द्रष्टव्यः, तावत्कालमध्ये चाधस्तनोदयक्षणे वेदनत. क्षीणे शेषक्षणेषु दलिकं रचयति, न पुनरुपरि गुणश्र ेणि वर्धयति । उक्तं च- सेढीइ कालमाणं दुष्णयकरणाणसमहियं जाण । खिज्जइ सा उदएणं जं सेसं तम्मि णिक्लेओ ॥ अर्थात् अब गुणश्रेणि का स्वरूप कहते हैं- जिस स्थितिकण्डक का घात करता है, उसमें से दलिकों को लेकर उदयकाल से लेकर अन्तर्मुहूर्त के अंतिम समय तक के प्रत्येक समय में असंख्यातगुणे - असंख्यातगुणे दलिक स्थापन करता है । कहा भी है ऊपर की स्थिति से पुद्गलों को लेकर उदयकाल में थोड़े स्थापन करता है, दूसरे समय में उससे असख्यातगुणे स्थापन करता है, तीसरे समय में उससे असंख्यातगुणे स्थापन करता है । इस प्रकार अन्तर्मुहूर्त काल की समाप्ति के समयों में असंख्यातगुणे - असंख्यातगुणे दलिक स्थापन करता है । Jain Education International यह प्रथम समय में ग्रहण किये गये दलिकों के निक्षेपण की विधि है । इसी तरह दूसरे आदि समयों में ग्रहण किये गये दलिकों के निक्षेपण की विधि जाननी चाहिए तथा गुणश्रेणि रचना के लिये प्रथम समय से लेकर गुणश्रेणि के अन्तिम समय तक उत्तरोत्तर असंख्यातगुणे - असंख्यातगुणे दलिक ग्रहण किये जाते हैं । कहा भी है ऊपर की स्थिति से दलिकों का ग्रहण करते हुए प्रथम समय में थोड़े For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001896
Book TitleKarmagrantha Part 5 Shatak
Original Sutra AuthorDevendrasuri
AuthorShreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year1986
Total Pages504
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size24 MB
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