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________________ ४३० परिशिष्ट- २ प्रकृतियों को एक एक भाग देना चाहिए। शेष एक भाग में आवली के असख्यातवें भाग का भाग देकर बहुभाग निकालते जाना चाहिए और पहला बहुभाग स्त्यानद्ध को, दूसरा निद्रा-निद्रा का तीसरा प्रचलाप्रचला को, चौथा निद्रा को, पांचवा प्रचला को, छठा चक्षुदर्शनावरण को सातवां अचक्षुदर्शनावरण को, आठवां अवधिदर्शनावरण का और शेष एक भाग केवलदर्शनावरण को देना चाहिए | इसी प्रकार देशघाती द्रव्य में आवली के असंख्यातवें भाग का भाग देकर एक भाग को जुदा रख बहुभाग के तीन समान भाग करके देशघाती चक्षु - दर्शनावरण, अचक्ष ुदर्शनावरण और अवधिदर्शनावरण को एक-एक भाग देना चाहिए । शेष एक भाग में भी भाग देकर बहुभाग चक्षुदर्शनावरण, दूसरा बहुभाग अचक्षुदर्शनावरण को और शेष एक भाग अवधिदर्शनावरण को देना चाहिए | अपने-अपने भागों का संकलन करने से अपने-अपने द्रव्य का प्रमाण होता है । चक्षु, अचक्ष, और अवधि दर्शनावरण का द्रव्य सर्वघाती भी है और देशघाती भी । शेष छह प्रकृतियों के सर्वघातिनी होने से उनका द्रव्य सर्वघाती ही होता है । अन्तराय - प्राप्त द्रव्य में आवली के असंख्यातवें भाग ( प्रतिभाग) का भाग देकर एक भाग के बिना शेष बहुभाग के पांच समान भाग करके पांचों प्रकृतियों को एक, एक भाग देना चाहिए । अब शेष एक भाग में प्रतिभाग का भाग देकर बहुभाग वीर्यान्तराय को देना चाहिए। शेष एक भाग में पुनः प्रतिभाग का भाग देकर बहुभाग उपभोगान्तराय को देना चाहिये। इसी प्रकार जो जो अवशेष एक भाग रहे, उसमें प्रतिभाग का भाग दे-देकर क्रमश: बहुभाग भोगान्त - राय और लाभान्तराय को देना चाहिए । शेष एक भाग दानान्तराय को देना चाहिए | अपने-अपने समान भाग में अपना-अपना बहुभाग मिलाने से प्रत्येक का द्रव्य होता है । मोहनीय - सर्वघाती द्रव्य को प्रतिभाग आवली के असख्यातवें भाग का भाग देकर एक भाग को अलग रखकर शेष बहुभाग के समान सत्रह भाग करके सत्रह प्रकृतियों को देना चाहिये । शेष एक भाग में प्रतिभाग का भाग देकर बहुभाग मिथ्यात्व को देना चाहिए । शेष एक भाग में प्रतिभाग का भाग देकर बहुभाग अनन्तानुबन्धी लोभ को दें, शेष एक भाग को प्रतिभाग का भाग For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International
SR No.001896
Book TitleKarmagrantha Part 5 Shatak
Original Sutra AuthorDevendrasuri
AuthorShreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year1986
Total Pages504
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size24 MB
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