________________
पंचम कर्मग्रन्थ
४२६
उत्तर प्रकृतियों में मोहनीय, ज्ञानावरण, दर्शनावरण के भेदों में क्रम से होन-हीन द्रव्य है और नाम, अंतराय कर्म के भेदों में क्रम से अधिक अधिक द्रव्य है तथा बाकी बचे वेदनीय, गोत्र, आयु कर्म, इन तीनों के भेदों में बटवारा नहीं होता है । क्योंकि इनकी एक ही प्रकृति एक काल में बंधती है । जैसे वेदनीय में साना वेदनीय का बंध हो या असाता वेदनीय का परन्तु दोनों का एक साथ बंध नहीं होता है । इसीलिए मूल प्रकृति के द्रव्य के प्रमाण ही इन तीनों के द्रव्य को समझना चाहिए ।
विभाग की रीति निम्न प्रकार है
---
ज्ञानावरण - सर्वघाती द्रव्य में आवली के असंख्यातवें भाग का भाग देकर बहुभाग के पांच समान भाग करके पांच प्रकृतियों को एक एक भाग देना चाहिए । शेष एक भाग में आवली के असंख्यातवें भाग का भाग देकर बहुभाग मतिज्ञानावरण को, शेष एक भाग में पुनः आवली के असंख्यातवें भाग का भाग देकर दूसरा बहुभाग श्रुतज्ञानावरण को, शेष भाग में पुनः आवली के असंख्यातवें भाग का भाग देकर तीसरा बहुभाग अवधिज्ञानावरण को, इसी तरह चौथा बहुभाग मनपर्यायज्ञानावरण को और शेष एक भाग केवलज्ञानावरण को देना चाहिए । पहले के भाग में अपने अपने बहुभाग को मिलाने से मतिज्ञानावरण आदि का सर्वघाती द्रव्य होता है ।
-
अनन्तवें भाग के सिवाय शेष बहुभाग द्रव्य देशघाती होता है । यह देशघाती द्रव्य केवलज्ञानावरण के सिवाय शेष चार देशघाती प्रकृतियों को मिलता है । विभाग की रीति पूर्व अनुसार है । अर्थात् देशघाती द्रव्य में आवली के असंख्यातवें भाग का भाग देकर एक भाग को जुदा रखकर शेष बहुभाग के चार समान भाग करके चारों प्रकृतियों को एक एक भाग देना चाहिए । शेष एक भाग में आवली के असंख्यातवें भाग का भाग देकर बहुभाग निकालते हुए क्रमशः वह बहुभाग मतिज्ञानावरण, श्रुतज्ञानावरण, अवधिज्ञानावरण और मनपर्यायज्ञानावरण को नम्बर वार देना चाहिए। अपने - अपने सर्वघाती और देशघाती द्रव्य को मिलाने से अपने अपने सर्व द्रव्य का परिमाण होता है ।
दर्शनावरण -- सर्वघाती द्रव्य में आवली के असंख्यातवें भाग का भाग देकर एक भाग को अलग रखकर शेष बहुभाग के नौ भाग करके दर्शनावरण की नौ
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org