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________________ पंचम कर्मग्रन्थ ३७७ इसके बाद अनिवृत्तिकरण गुणस्थान होता है । उसमें भी पूर्ववत् स्थितिघात आदि कार्य होते हैं । अनिवृत्तिकरण के असंख्यात भाग बीत जाने पर चारित्रमोहनीय की इक्कीस प्रकृतियों का अन्तरकरण करता है । जिन कर्मप्रकृतियों का उस समय बंध और उदय होता है उसके अन्तरकरण संबन्धी दलिकों को प्रथम स्थिति और द्वितीय स्थिति में क्षेपण करता है । जैसे कि पुरुषवेद के उदय से श्र ेणि चढ़ने वाला पुरुषवेद का । जिन कर्मों का उस समय केवल उदय ही होता है और बंध नहीं होता है, उनके अन्तरकरण संबन्धी दलिकों को प्रथम स्थिति में ही क्षेपण करता है, द्वितीय स्थिति में नहीं । जैसे कि स्त्रीवेद के उदय से श्र ेणि चढ़ने वाला स्त्रीवेद का । जिन कर्मों का उदय नहीं होता किन्तु उस समय केवल बंध ही होता है, उनके अन्तरकरण सम्बंधी दलिकों का द्वितीय स्थिति में क्षेपण करता है, प्रथम स्थिति में नहीं । जैसे कि संज्वलन क्रोध के उदय से श्रोणि चढ़ने वाला शेष संज्वलन कषायों का, किन्तु जिन कर्मों का न तो बंध ही होता है और न उदय ही, उनके अन्तरकरण संबन्धी दलिकों का अन्य प्रकृतियों में क्षेपण करता है । जैसे कि द्वितीय और तृतीय कषाय का । उक्त चतुर्भंगी का स्पष्टीकरण इस प्रकार है- १. जिन कर्मों का उस समय बंध और उदय होता है, उनके afras को प्रथम स्थिति और द्वितीय स्थिति में क्षेपण किया जाता है । २. जिन कर्मों का उस समय उदय ही होता है, उनको प्रथम स्थिति में ही क्षेपण किया जाता है । ३. जिन कर्मों का उस समय बंध ही होता है, उनके दलिकों को द्वितीय स्थिति में क्षेपण किया जाता है । ४. जिन कर्मों का न तो उदय और न बंध ही होता है, उनके दलिकों को अन्य प्रकृतियों में क्षेपण किया जाता है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001896
Book TitleKarmagrantha Part 5 Shatak
Original Sutra AuthorDevendrasuri
AuthorShreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year1986
Total Pages504
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size24 MB
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