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________________ ३७८ शतक अन्तरकरण करके एक अन्तर्मुहूर्त में नपुंसक वेद का उपशम करता है, उसके बाद एक अन्तर्मुहूर्त में स्त्रीवेद का उपशम और उसके बाद हास्यादि षट्क का उपशम होते 'ही पुरुषवेद के बंध, उदय और उदीरणा का विच्छेद है । "हास्यादि षट्क की उपशमना के अनन्तर समय कम दो आवलिका मात्र में सकल पुरुषवेद का उपशम करता है । जिस समय में हास्यादि षट्क उपशान्त हो जाते हैं और पुरुषवेद की प्रथम स्थिति क्षीण हो जाती है, उसके अनन्तर समय में अप्रत्याख्यानावरण, प्रत्याख्यानावरण और संज्वलन क्रोध का एक साथ उपशम करना प्रारंभ करता है और जब संज्वलन क्रोध की प्रथम स्थिति में एक आवलिका काल शेष रह जाता है तब संज्वलन क्रोध के बन्ध, उदय और उदीरणा का विच्छेद हो जाता है तथा अप्रत्याख्यानावरण, प्रत्याख्यानावरण क्रोध का उपशम । उस समय संज्वलन क्रोध की प्रथम स्थितिगत एक आवलिका को और ऊपर की स्थितिगत एक समय कम दो आवलिका में बद्ध दलिकों को छोड़कर शेष दलिक उपशान्त हो जाते हैं । उसके बाद समय कम दो आवलिका काल में संज्वलन क्रोध का उपशम हो जाता है । जिस समय में संज्वलन क्रोध के बन्ध, उदय और उदीरणा का विच्छेद होता है, उसके अनन्तर समय से लेकर संज्वलन मान की द्वितीय स्थिति से दलिकों को लेकर प्रथम स्थिति करता है । प्रथम स्थिति करने के समय से लेकर अप्रत्याख्यानावरण और प्रत्याख्यानावरण. और संज्वलन मान का एक साथ उपशम करना प्रारंभ करता है । संज्वलन मान की प्रथमस्थिति में समय कम तीन आवलिका शेष रहने पर अप्रत्याख्यानावरण और प्रत्याख्यानावरण मान के दलिकों का संज्वलन मान में प्रक्षेप नहीं किया जाता किन्तु संज्वलन माया आदि में किया जाता है | एक आवलिका शेष रहने पर संज्वलन मान के बंध, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001896
Book TitleKarmagrantha Part 5 Shatak
Original Sutra AuthorDevendrasuri
AuthorShreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year1986
Total Pages504
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size24 MB
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