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पंचम कर्मग्रन्थ
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बादर और सूक्ष्म भावपुद्गल परावर्तों में भी अन्य परावर्तों की तरह यह अन्तर समझना चाहिये कि कोई जीव सबसे जघन्य अनुभागबंधस्थान में मरण करके उसके बाद अनन्तकाल बीत जाने पर भी जब प्रथम अनुभागस्थान के अनन्तरवर्ती दूसरे अनुभागबंधस्थान में मरण करता है तो सूक्ष्म भावपुद्गल परावर्त में वह मरण गणना में लिया जाता है किन्तु अक्रम से होने वाले अनन्त-अनन्त मरण गणना में नहीं लिये जाते हैं । इसी तरह कालान्तर में द्वितीय अनुभागबंधस्थान के अनन्तरवर्ती तीसरे अनुभागबंधस्थान में जब मरण करता है तो वह मरण गणना में लिया जाता है। चौथे, पांचवें आदि स्थानों के लिये भी यही क्रम समझना चाहिये । अर्थात् बादर में तो क्रम-अक्रम किसी भी प्रकारसे होने वाले मरणों की और सूक्ष्म में सिर्फ क्रम से होने वाले मरणों की गणना की जाती है।
इस प्रकार से बादर और सूक्ष्म पुद्गल परावर्तों' का स्वरूप बत(क) पंचसंग्रह २१३७-४१ तक में भी इसी प्रकार द्रव्य आदि चारों पुद्गल परावर्गों का स्वरूप, भेद आदिका वर्णन किया है। वे गाथायें इस प्रकार हैं
पोग्गल परियट्टो इह दव्वाइ चविहो मुणेयव्यो । एक्केक्को पुण दुविहो बायरहमत्तभेएणं ।। संसारंमि अडतो जाव य कालेण फुसिय सव्वाण । इगु जीवु मुयइ बायर अन्नयरतणुट्ठिओ सुहुमो ॥ लोगस्स पएसेसु अणंतरपरंपराविभत्तीहिं । खेत्तंमि बायरो सो सुहुमो उ अणंत रमयस्स ॥ उस्सप्पिणिसमएस अणंतरपरंपरा विभत्तीहिं । कालम्मि बायरो सो सुहुमो उ अणंतरमयस्स ।। अणभागदाणेसु अणंतरपरंपराविभत्तीहिं ।
भावंमि वायरो सो सुहुमो सम्वेसुऽणुकमसो ॥ (ख) दिगम्बर साहित्य में परावर्तों का वर्णन भिन्न रूप से किया गया हैं । उक्त
वर्णन परिशिष्ट में देखिये ।
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