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________________ शतक स्थान में प्रत्याख्यानावरण कषाय अनुदयवती हैं अतः उनमें उदयावलिका को छोड़कर ऊपर के समय से गुणश्रेणि होती है । देशविरति और सर्वविरति की प्राप्ति के पश्चात एक अन्तमुहर्त काल तक जीव के परिणाम वर्धमान ही रहते हैं, लेकिन उसके बाद कोई नियम नहीं है । किसी के परिणाम वर्धमान भी रहते हैं, किसी के तदवस्थ रहते हैं और किसी के हीयमान हो जाते हैं तथा जब तक देशविरति या सर्वविरति रहती है तब तक प्रतिसमय गुणश्रेणि भी होती है। हां यहां इतनी विशेषता जरूर है कि देशचारित्र अथवा सकलचारित्र के साथ उदयावलि के ऊपर एक अन्तमुहूर्त काल तक परिणामों की नियत वृद्धि का काल उतना ही होने से असंख्यात गुणित क्रम से गुणश्रोणि की रचना करता है । उसके बाद यदि परिणाम वर्धमान रहते हैं तो परिणामों के अनुसार कभी असंख्यातवें भाग अधिक, कभी संख्यातवें भाग अधिक और कभी संख्यात गुणी और कभी असंख्यात गुणी गुणश्रोणि करता है। यदि हीयमान परिणाम हुए तो उस समय उक्त प्रकार से ही हीयमान गुणश्रोणि करता है और अवस्थित दशा में अवस्थित गुणश्रोणि को करता है । इसका तात्पर्य यह है कि वर्धमान परिणामों की दशा में दलिकों की संख्या बढ़ती हुई होती है, हीयमान दशा में घटती हुई होती है और अवस्थित दशा में अवस्थित रहती है । इस प्रकार देशविरति और सर्वविरति में प्रतिसमय असंख्यातगुणी निर्जरा होती है। ___ चौथी गुणश्रेणि का नाम है अनन्तानुबंधी की विसंयोजना। अनन्तानुबन्धी कषाय का विसंयोजन अविरत सम्यग्दृष्टि, देशविरत उदयावलिए उप्पिं गुणसेढिं कुणइ सह चरित्तेण । अंतो असंखगुणणाए तत्तियं वड्डए कालं ।।-पंचसंग्रह ७६३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001896
Book TitleKarmagrantha Part 5 Shatak
Original Sutra AuthorDevendrasuri
AuthorShreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year1986
Total Pages504
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size24 MB
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