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________________ पंचम कर्मग्रन्थ २७६ मान, नियसब्वपएसउ -अपने समस्त प्रदेशों द्वारा, गहेइ - ग्रहण करता है, जिउ --जीव । गाथार्थ - अन्त के चार स्पर्श, दो गंध, पांच वर्ण और पांच रस वाले सब जीवों से भी अनन्त गुणे रस वाले अणुओं से युक्त अनन्त प्रदेश वाले और एक क्षेत्र में अवगाढ़ रूप से विद्यमान कर्मस्कन्धों को जीव अपने सर्व प्रदेशों द्वारा ग्रहण करता है। विशेषार्थ - गाथा में जीव द्वारा ग्रहण किये जाने वाले कर्मस्कन्धों का स्वरूप बतलाते हुए यह स्पष्ट किया है कि जीव किस क्षेत्र में रहने वाले कर्मस्कन्धों को ग्रहण करता है और उनके ग्रहण की क्या प्रक्रिया है। ____ जीव द्वारा जो कर्मस्कन्ध ग्रहण किये जाते हैं वे पौद्गलिक हैं अर्थात् पुद्गल परमाणुओं का समूहविशेष हैं । इसीलिए उनमें भी पुद्गल के गुण -- स्पर्श, रस, गन्ध और वर्ण पाये जाते हैं । अर्थात् जैसे पुद्गल रूप, रस, गंध, स्पर्श वाला है वैसे ही कर्मस्कन्ध भी रूप आदि वाले होने से पुद्गलजातीय हैं। एक परमाणु में पांच प्रकार के रसों में से कोई एक रस, पांच प्रकार के रूपों में से कोई एक रूप, दो प्रकार की गंधों में से कोई एक गंध और आठ प्रकार के स्पy -- गुरु-लघु, कोमल-कठोर, शीत-उष्ण, स्निग्ध और रूक्ष में से दो अविरुद्ध स्पर्श होते हैं।' १ कारणमेव तदन्त्यं सूक्ष्मो नित्यश्च भवति परमाणः । एकरसगधवर्णों द्विस्पर्शः कार्यलिङ्गश्च ।। -तत्त्वार्थभाष्य में उद्धृत परमाणु किसी से उत्पन्न नहीं होता है किन्तु दूसरी वस्तुओं को (शेष अगले पृष्ठ पर देखें) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001896
Book TitleKarmagrantha Part 5 Shatak
Original Sutra AuthorDevendrasuri
AuthorShreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year1986
Total Pages504
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size24 MB
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