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________________ २८० शतक इस प्रकार से एक परमाणु में एक रूप, एक रस, एक गंध और अंत के चार स्पर्शों में से दो स्पर्श होते हैं किन्तु इन परमाणुओं के समूह से जो स्कन्ध तैयार होते हैं, उनमें पांचों वर्ण, पांचों रस, दोनों गंध और चार स्पर्श हो सकते हैं। क्योंकि उस स्कन्ध में बहुत से परमाणु होते हैं और उन परमाणुओं में से कोई किसी रूप वाला, कोई किसो रस वाला, कोई किसी गंध वाला होता है तथा किसी परमाणु में अंत के चार स्पर्शों-शीत-उष्ण और स्निग्ध-रूक्ष में से स्निग्ध और उष्ण स्पर्श पाया जाता है और किसी में रूक्ष और शीत स्पर्श पाया जाता है। इसीलिये कर्मस्कन्धों को पंच वर्ण, पंच रस, दो गंध और चार स्पर्श वाला कहा जाता है। इसी कारण ग्रन्थकार ने कर्मस्कन्ध को अंत के चार स्पर्श' दो गंध, पांच वर्ण और पांच रस वाला बतलाया है। कर्मस्कन्धों को चतुःस्पर्शी कहने का कारण यह है कि स्पर्श के जो आठ भेद बतलाये गये हैं उनमें से आहारक शरीर के योग्य ग्रहण वर्गणा तक के स्कन्धों में तो आठों स्पर्श पाये जाते हैं किन्तु उससे उत्पन्न करने वाला होने से कारण है । उससे छोटी दूसरी कोई वस्तु नहीं है, अत: वह अन्त्य है । सूक्ष्म है, नित्य है तथा एक रस, एक गंध, एक वर्ण और दो स्पर्श वाला है। उसके कार्य को देखकर उसका अनुमान ही किया जा सकता है किन्तु प्रत्यक्ष नहीं होता है। परमाणु में शीत और उष्ण में से एक तथा स्निग्ध और रूक्ष में ... से एक, इस प्रकार दो स्पर्श होते हैं। कर्मग्रन्थ की स्वोपज्ञ टीका में लिखा है कि बृहत् शतक की टीका में बतलाया है कि कर्मस्कन्ध में मृदु और लघु स्पर्श तो अवश्य रहते हैं । इनके सिवाय स्निग्ध, उष्ण अथवा स्निग्ध, शीत अथवा रूक्ष, उष्ण अथवा रूक्ष, शीत में से दो स्पर्श और रहते हैं। इसीलिये एक कर्मस्कन्ध में चार स्पर्श बतलाये जाते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only ___www.jainelibrary.org
SR No.001896
Book TitleKarmagrantha Part 5 Shatak
Original Sutra AuthorDevendrasuri
AuthorShreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year1986
Total Pages504
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size24 MB
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