SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 32
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( २७ ) उनकी स्थिति और संख्या, प्रदेश उतने ही रह जाते हैं जितने कि आयुकर्म के रहते हैं । ऐसा होने पर शेष रहे कर्मों का आयुकर्म की समयस्थिति के साथ ही क्षय हो जाने से आत्मा पूर्ण निष्कर्म होकर सिद्ध-बुद्ध हो जाती है । यही आत्मा का लक्ष्य है, जिसे प्राप्त करने में आत्मा के पुरुषार्थ की सफलता है । इस प्रकार से जैनदर्शन में कर्मसिद्धान्त का वैज्ञानिक रूप से निरूपण किया गया है । जिसमें अनेक उलझी हुई गुत्थियों को सुलझाया है । विभिन्न रहस्यों को उद्घाटित किया है और आत्मा में स्वतन्त्रता प्राप्ति का उत्साह जगता है । स्वपुरुषार्थ पर विश्वास करने की प्रेरणा मिलती है । ग्रन्थ परिचय प्रस्तुत शतक नामक कर्मग्रन्थ श्री देवेन्द्रसूरि रचित नवीन कर्मग्रन्थों में पाँचवाँ कर्मग्रन्थ है । इसके पूर्व के चार कर्मग्रन्थ क्रमशः (१) कर्मविपाक (२) कर्मस्तव, (३) बंधस्वामित्व, (४) षडशीति नामक इसी ग्रन्थमाला में प्रकाशित हो चुके हैं । उन कर्मग्रन्थों की प्रस्तावना में उनके बारे में परिचय दिया गया है । यहाँ उसी क्रम से इस पंचम कर्मग्रन्थ का संक्षिप्त परिचय प्रस्तुत किया जा रहा है । इस पंचम कर्मग्रन्थ में प्रथम कर्मग्रन्थ में वर्णित प्रकृतियों में से कौन-कौन प्रकृतियाँ ध्रुवबन्धिनी, अध्रुवबन्धिनी, ध्र ुवोदया, अध्रुवोदया, धवसत्ताक, अध्रुवसत्ताक, सर्वदेशघाती, अघाती, पुण्य, पाप, परावर्तमान, अपरावर्तमान हैं, यह बतलाया है । उसके बाद उन्हीं प्रकृतियों में कौन-कौन क्षेत्रविपाको, जीवविपाकी, भवविपाकी और पुद्गलविपाकी हैं, यह बताया गया है । अनन्तर कर्म प्रकृतियों के प्रकृतिबन्ध, स्थितिबन्ध, रसबन्ध और प्रदेशबन्ध इन चार प्रकार के बन्धों का स्वरूप बतलाया है । प्रकृतिबन्ध के कथन के प्रसंग में मूल तथा उत्तर प्रकृतियों में भूयस्कार, 1 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001896
Book TitleKarmagrantha Part 5 Shatak
Original Sutra AuthorDevendrasuri
AuthorShreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year1986
Total Pages504
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy