________________
पंचम कर्मग्रन्थ
२६६ भाग अधिक परमाणु वाली औदारिक शरीर की ग्रहणयोग्य उत्कृष्ट वर्गणा होती है । इस अनन्तवें भाग में अनन्त परमाणु होते हैं । अतः जघन्य वर्गणा से लेकर उत्कृष्ट वर्गणा पर्यन्त अनन्त वर्गणायें औदारिक शरीर की ग्रहणयोग्य जानना चाहिये। __ औदारिक शरीर की उत्कृष्ट वर्गणा से ऊपर एक-एक परमाणु बढ़ते स्कन्धों से बनने वाली वर्गणायें औदारिक की अपेक्षा से अधिक प्रदेश वाली और सूक्ष्म होती हैं, जिससे औदारिक के ग्रहण-योग्य नहीं होती हैं और जिन स्कन्धों से वैक्रिय शरीर बनता है, उनकी अपेक्षा से अल्प प्रदेश वाली और स्थूल होती हैं जिससे वे वैक्रिय शरीर के ग्रहणयोग्य नहीं होती हैं। इस प्रकार औदारिक शरीर की उत्कृष्ट वर्गणा के ऊपर एक-एक परमाणु बढ़ते स्कंधों की अनन्त अग्रहणयोग्य वर्गणा होती हैं । जैसे औदारिक शरीर की ग्रहणयोग्य जघन्य वर्गणा से उसी की उत्कृष्ट वर्गणा अनंतवें भाग अधिक है, वैसे ही अग्रहणयोग्य जघन्य वर्गणा से उसकी उत्कृष्ट वर्गणा अनंतगुणी है । इस गुणाकार का प्रमाण अभव्य राशि से अनंतगुणा और सिद्धराशि का अनंतवां भाग है। __ इस अग्रहणयोग्य वर्गणा के ऊपर पुनः ग्रहणयोग्य वर्गणा आती है और ग्रहणयोग्य वर्गणा के ऊपर अग्रहणयोग्य वर्गणा । इस प्रकार ये दोनों एक दूसरे से अन्तरित हैं ।। __इस प्रकार से औदारिक शरीर की ग्रहणयोग्य और अग्रहणयोग्य वर्गणाओं का कथन करने के बाद वैक्रिय आदि की ग्रहणयोग्य, अग्रहणयोग्य वर्गणाओं का स्पष्टीकरण करते हैं ।
एमेव विउव्वाहारतेयभासाणुपाणमणकम्मे । सुहुमा कमावगाहो अणूणंगुलअसंखंसो ॥७६ ॥
शब्दार्थ-एमेव-पूर्वोक्त के समान, विउव्वाहारतेयभासाणुपाणमणकम्मे-वैक्रिय, आहारक, तेजस, भाषा, श्वासोच्छ्वास, मन
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org