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________________ पंचम कर्मग्रन्थ २६१ वह पुनः उनका जघन्य अनुभाग बंध करता है। इस प्रकार जघन्य और अजघन्य अनुभाग बंध सादि और अध्रुव हैं । ___ वेदनीय और नामकर्म का भी अनुत्कृष्ट अनुभाग बंध सादि आदि चार प्रकार का है। क्योंकि साता वेदनीय और यशःकोति नामकर्म की अपेक्षा वेदनीय और नामकर्म का उत्कृष्ट अनुभाग बंध क्षपक सूक्ष्मसंपराय नामक दसवें गुणस्थान में ही होता है और शेष स्थानों में अनुत्कृष्ट बंध होता है ! ग्यारहवें गुणस्थान में उनका बंध नहीं होता है। जिससे ग्यारहवें गुणस्थान से च्युत होकर जो अनुत्कृष्ट अनुभाग बंध होता है वह सादि और उससे पहले अनादि । भव्य जीव का बंध ध्रुव और अभव्य का अध्रुव है । इस प्रकार वेदनीय और नामकर्म के अनुत्कृष्ट अनुभाग बंध के सादि आदि चार भंग होते हैं। वेदनीय और नामकर्म के अनुत्कृष्ट बंध के सिवाय शेष उत्कृष्ट, जघन्य और अजघन्य बंध के सादि और अध्रुव भंग ही होते हैं। उत्कृष्ट बंध तो क्षपक सूक्ष्मसंपराय गुणस्थान में ही होता है, अन्य गुणस्थान में नहीं, अतः सादि है और बारहवें आदि गुणस्थानों में नहीं होने से अध्रुव है। जघन्य अनुभाग बंघ मध्यम परिणाम वाला सम्यग्दृष्टि अथवा मिथ्यादृष्टि जीव करता है। यह जघन्य अनुभाग बंध अजघन्य अनुभाग बंध के बाद होने से सादि है और कम से कम एक समय और अधिक से अधिक चार समय तक जघन्य बंध होने के पश्चात पुनः अजघन्य बंध होता है, जिससे जघन्य बंध अध्रुव और अजघन्य बंध सादि है। उसके बाद उसी भव में या दूसरे किसी भव में पुनः जघन्य बंध के होने पर अजघन्य बंध अध्रुव होता है। इस प्रकार शेष उत्कृष्ट, जघन्य और अजघन्य बंध सादि और अध्रुव होते हैं। अब ध्रवबंधिनी और अध्रुवबंधिनी प्रकृतियों के बंधों के बारे में Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001896
Book TitleKarmagrantha Part 5 Shatak
Original Sutra AuthorDevendrasuri
AuthorShreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year1986
Total Pages504
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size24 MB
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