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________________ २४० गाथार्थ - वैक्रियद्विक, देवद्विक, आहारकद्विक, शुभ विहायोगति, वर्णचतुष्क, तैजसचतुष्क, तीर्थंकर नामकर्म, सातावेदनीय, समचतुरस्र संस्थान, पराघात, त्रसदशक, पंचेन्द्रिय जाति, उच्छ्वास और उच्च गोल का उत्कृष्ट अनुभाग बंध क्षपक श्र ेणि चढ़ने वाले करते हैं । तमः तमप्रभा के नारक जीव उद्योत नामकर्म का उत्कृष्ट अनुभाग बांधते हैं तथा सम्यग्दृष्टि देव मनुष्यद्विक, औदारिकद्विक और वज्रऋषभनाराच संहनन का उत्कृष्ट अनुभाग बांधते हैं । शेष प्रकृतियों का उत्कृष्ट अनुभाग बंध चारों गति के मिथ्यादृष्टि जीव करते हैं । शतक विशेषार्थ – इन दो गाथाओं में पूर्व गाथा में बताई गई सत्रह प्रकृतियों के अलावा शेष रही प्रकृतियों के उत्कृष्ट अनुभाग बंध के स्वामियों का कथन किया है । जिनमें कुछ प्रकृतियों का नामोल्लेख करके शेष प्रकृतियों के उत्कृष्ट अनुभाग बंध का स्वामी चारों गति के मिथ्यादृष्टि जीवों को बतलाया है । जिसका स्पष्टीकरण नीचे किया जाता है । 'विउब्विसुरा सासुच्च' पद में वैक्रियद्विक से लेकर उच्छ्वास, उच्चगोत्र तक बत्तीस प्रकृतियों को ग्रहण किया गया है । जिनका उत्कृष्ट अनुभाग बंध क्षपक श्र ेणि आरोहण करने वाले मनुष्यों को बतलाया है । उनमें से साता वेदनीय, उच्च गोत्र और त्रसदशक में गर्भित यशःकीर्ति नामकर्म का उत्कृष्ट अनुभाग बंध दसवें सूक्ष्मसंपराय गुणस्थान के अन्त में होता है । क्योंकि इन तीन प्रकृतियों के बंधकों में वही सबसे विशुद्ध है और पुण्य प्रकृतियों का उत्कृष्ट अनुभाग बंध विशुद्ध परिणामों से होता है । उक्त तीन प्रकृतियों के सिवाय शेष उनतीस प्रकृतियों का उत्कृष्ट अनुभाग बंध आठवें अपूर्वकरण गुणस्थान के छठे भाग में देवगति के * Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001896
Book TitleKarmagrantha Part 5 Shatak
Original Sutra AuthorDevendrasuri
AuthorShreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year1986
Total Pages504
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size24 MB
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