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________________ पंचम कर्मग्रन्थ २१७ थावरदस-स्थावर दशक, नपुइत्थी- नपुंसक वेद, स्त्री वेद, दुजुयल - दो युगल, असाय-असाता वेदनीय का । समयादतमुहुत्तं - एक समय से लेकर अन्तर्मुहूर्त पर्यन्त, मणुदुग-मनुष्यद्विक, जिण-तीर्थकर नामकर्म, वइर-वज्रऋषभनाराच संहनन, उरलुवंगेसु-औदारिक अंगोपांग का, तित्तीसयरा-तेतीस सागरोपम, परमो-उत्कृष्ट बंध, अंतमुह -- अन्तमुहूर्त, लहुवि -- जघन्य बंध भी, आउजिणे-आयुकर्म और तीर्थंकर नाम का । गाथार्थ-तियंचद्विक और नीच गोत्र का एक समय से लेकर असंख्यात काल तक निरंतर बंध होता है । आयुकर्म का अन्तमुहूर्त, औदारिक शरीर का असंख्यात पुद्गल परावर्त और साता वेदनीय का कुछ कम पूर्व कोड़ी तक निरंतर बंध होता है। पराघात, उच्छ्वास, पंचेन्द्रिय जाति और त्रसचतुष्क का एकसौ पचासी सागरोपम निरंतर बंध होता है । शुभ विहायोगति, पुरुष वेद, सुभगत्रिक, उच्च गोत्र और समचतुरस्र संस्थान का उत्कृष्ट निरंतर बंध एक सौ बत्तीस सागरोपम होता है। ___ अशुभ विहायोगति, एकेन्द्रिय से चतुरिन्द्रिय तक अशुभ जातिचतुष्क, पहले के सिवाय पांच संस्थान, पांच संहनन, आहारकद्विक, नरकद्विक, उद्योतद्विक, स्थिर, शुभ, यशःकीर्ति नामकर्म, स्थावर दशक, नपुंसकवेद, स्त्रीवेद, दो युगल और असाता वेदनीय का एक समय से लेकर अन्तमुहूर्त पर्यन्त निरंतर बंध होता है । मनुष्यद्विक, तीर्थंकर नामकर्म, वज्रऋषभनाराच Jain Education International For Private & Personal Use Only. www.jainelibrary.org
SR No.001896
Book TitleKarmagrantha Part 5 Shatak
Original Sutra AuthorDevendrasuri
AuthorShreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year1986
Total Pages504
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size24 MB
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