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________________ २१८ शतक संहनन और औदारिक अंगोपांग नामकर्म का तेतीस सागरोपम उत्कृष्ट सतत बंध होता है । चार आयु और तीर्थकर नामकर्म का जघन्य निरंतर बंध भी अन्तमुहूर्त होता है।) विशेषार्थ---- इन चार गाथाओं में अध्रुवबंधिनी प्रकृतियों के नाम तथा उनके निरंतर बन्ध होने के उत्कृष्ट समय को बतलाया है । इन प्रकृतियों के निरंतर बन्ध होने के जघन्य समय का संकेत इसलिये नहीं किया है क्योंकि अध्रुवबन्धिनी होने से एक समय के बाद भी इनका बन्ध रुक सकता है। Ra mmany ma... सभी प्रकृतियों का निरंतर बन्धकाल समान नहीं होने से समान समय वाली प्रकृतियों के वर्ग बनाकर उन-उन के बन्ध का समय बतलाया है। जिनका स्पष्टीकरण नीचे किये जा रहा है । _ तिर्यंचद्विक (तिर्यंचगति, तिथंचानुपूर्वी) और नीच गोत्र का बन्धकाल एक समय से लेकर असंख्यात काल हो सकता है - समयादसंखकालं तिरिदुगनीएसु । इसका कारण यह है कि उक्त तीन प्रकृ. तियां जघन्य से एक समय तक बंधती हैं, क्योंकि दूसरे समय में इनकी विपक्षी प्रकृतियों का बन्ध हो सकता है। किन्तु जब कोई जीव तेजस्काय और वायुकाय में जन्म लेता है तो उसके तिर्यंचद्विक व नीच गोत्र का निरंतर बन्ध होता रहता है,जब तक वह उस काय में बना रहता है ।। तेजस्काय और वायुकाय के जीवों में तिर्यंचद्विक के सिवाय अन्य किसी गति और आनुपूर्वी का बन्ध नहीं होता और न उच्च गोत्र का ही। (तेजस्काय व वायुकाय में जन्म लेने वाला जीव लोकाकाश के असंख्यात प्रदेश होते हैं, अधिक-से-अधिक उतने समय तक बराबर तेजस्काय व वायुकाय में जन्म लेता रहता है। इसीलिए इन तीन प्रकृतियों का उत्कृष्ट निरन्तर बन्धकाल असंख्यात समय अर्थात् Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001896
Book TitleKarmagrantha Part 5 Shatak
Original Sutra AuthorDevendrasuri
AuthorShreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year1986
Total Pages504
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size24 MB
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