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________________ शतक आयुकर्म की उत्तर प्रकृतियों का जघन्य स्थितिबंध इस प्रकार समझना चाहिये कि 'सुरनरयाउ समादससहस्स' देवायु और नरकायु की जघन्य स्थिति दस हजार वर्ष है तथा देवायु व नरकायु के सिवाय शेष दो आयुओं-तिर्यंचायु, मनुष्यायु की जघन्य स्थिति क्षुद्रभव प्रमाण है । आगमों में जो मनुष्यायु और तिर्यंचायु की जघन्य स्थिति अन्तमुहूर्त प्रमाण बतलाई है, उसका यहाँ बतलाये गये क्षुद्रभव प्रमाण से कोई विरोध नहीं है। इसका कारण यह है कि अन्तमुहूर्त के बहुत से भेद हैं, उनमें से यहां क्षुद्रभव प्रमाण अन्तमुहूर्त लेना चाहिये । अन्तमुहूर्त न लिखकर उसके ठीक-ठीक परिमाण का सूचक क्षुद्रभव लिखा है । क्षुद्रभव का निरूपण आगे किया जा रहा है। इस प्रकार से उत्तर प्रकृतियों के जघन्य स्थितिबंध का कथन करके अब जघन्य अबाधा तथा तीर्थंकर व आहारकद्विक के जघन्य स्थितिबंध संबंधी मतान्तर को बतलाते हैं । सम्वाणवि लहुबंधे भिन्नमुहू अबाह आउजिठे वि। केइ सुराउसमं जिणमंतमुहू बिति आहारं ॥३६॥ ___ शब्दार्थ-सध्वाण- सब प्रकृतियों की, वि-तथा, लहुबंधेजघन्य स्थितिबंध की, भिन्नमुहू- अन्तर्मुहूर्त, अबाह अबाधाकाल, आउजिठे वि-आयु के उत्कृष्ट स्थितिबंध की भी, केइ-कुछ एक, सुराउसमं देवायु के समान, जिणं - तीर्थकर नामकर्म की, अंतमुहु --अन्तर्मुहूर्त, बिति-कहते हैं, आहारं आहारकद्विक की। गाथार्थ-समस्त प्रकृतियों के जघन्य स्थितिबंध की अन्तमुहूर्त की अबाधा होती है। आयुकर्म के उत्कृष्ट स्थितिबंध की जघन्य अबाधा अन्तमुहूर्त प्रमाण है । किन्ही Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001896
Book TitleKarmagrantha Part 5 Shatak
Original Sutra AuthorDevendrasuri
AuthorShreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year1986
Total Pages504
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size24 MB
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