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पंचम कर्मग्रन्थ
१२५ ___ गाथार्थ- कषायों की उत्कृष्ट स्थिति चालीस कोड़ाकोड़ी सागरोपम है। मृदु, लघु, स्निग्ध, उष्ण स्पर्श, सुरभि गंध, श्वेत वर्ण और मधुर रस की दस कोडाकोड़ी सागरोपम की होती है और इन दस कोडाकोड़ी सागरोपम में ढाई कोड़कोड़ी सागरोपम साधिक स्थिति पीत वर्ण और अम्ल रस आदि की समझना चाहिये ।
विशेषार्थ-गाथा में चारित्र मोहनीय के भेद सोलह कषायों और नामकर्म की कुछ उत्तर प्रकृतियों की उत्कृष्ट स्थिति बतलाई है। जो इस प्रकार है कि 'चालीस कसाएसुं' यानी अनंतानुबंधी क्रोध, मान, माया, लोभ, अप्रत्याख्यानावरण क्रोध, मान, माया, लोभ, प्रत्याख्यानावरण क्रोध, मान, माया, लोभ, संज्वलन, क्रोध, मान, माया, लोभ इन सोलह कषायों की उत्कृष्ट स्थिति चालीस कोड़ाकोड़ी सागरोपम है। ___ नामकर्म की उत्तर प्रकृतियों में से मृदु स्पर्श, लघु स्पर्श, स्निन्ध स्पर्श, उष्ण स्पर्श, सुरभि गंध, श्वेत वर्ण और मधुर रस इन सात प्रकृतियों की उत्कृष्ट स्थिति दस कोड़ाकोड़ी सागरोपम है तथा शेष रहे वर्ण चतुष्क के भेदों में से प्रत्येक वर्ण और प्रत्येक रस की स्थिति इस दस कोडीकोडा सागरोपम से ढाई कोड़ाकोड़ी सागरोपम अधिक-अधिक है । अर्थात् पीत वर्ण और अम्ल रस नामकर्म की उत्कृष्ट स्थिति साढ़े बारह कोड़ाकोड़ी सागरोपम है। रक्त वर्ण और कषाय रस की स्थिति पन्द्रह कोड़ाकोड़ी सागरोपम, नील वर्ण और कटुक रस की
१ चरित्त मोहे य चत्तालं ।
-गो० कर्मकाड १२८
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