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शतक
कालमर्यादा को उत्कृष्ट स्थिति और न्यूनतम कालमर्यादा को जघन्य स्थिति कहते हैं। ऊपर कही गई दोनों गाथाओं में ज्ञानावरण आदि आठ कर्मों की उत्कृष्ट और जघन्य स्थिति बतलाई है । इन उत्कृष्ट और जघन्य स्थिति के बीच जीवों की अध्यवसाययोग्यता से मध्यम स्थितियों के अनेक प्रकार हो जाते हैं ।
ज्ञानावरण आदि आठ कर्मों की जो उत्कृष्ट स्थिति बतलाई है, वह इतनी अधिक है कि संख्या प्रमाण के द्वारा उसका बतलाना अशक्यसा है, अतः उसे उपमा प्रमाण के एक भेद सागरोपम द्वारा बतलाया गया है तथा एक करोड़ को एक करोड़ से गुणा करने पर जो राशि आती है उसे कोडाकोड़ी कहते हैं । आयुकर्म को छोड़कर शेष सात कर्मों की कोडाकोड़ी सागरोपमों के द्वारा उत्कृष्ट स्थिति बतलाई है। ___ आयुकम ही एक ऐसा कर्म है जिसकी स्थिति कोडाकोड़ी सागरोपम में नहीं किन्तु सिर्फ सागरोपम में बताई है साथ ही आयुकम की उत्कृष्ट स्थिति बतलाने के बारे में यह भी विशेषता रखी है कि उसके दो भेदो----नरकायु और देवायु की भी उन्कृष्ट स्थिति बतला दी गई है। इसका कारण यह है कि मूल आयुकर्म की जो उत्कृष्ट स्थिति है, वही उत्कृष्ट स्थिति नरकायु और देवायु की भी है । अतः ग्रन्थलाघव की दृष्टि से मूल आयुकर्म को उत्कृष्ट स्थिति को अलग से न बतलाकर दो उत्तर प्रकृतियों के द्वारा उसकी तथा उसकी दो उत्तर प्रकृतियों की भी उत्कृष्ट स्थिति बतला दी है। ___ कषायों का उदय दसवें सूक्ष्मसंपराय गुणस्थान तक ही होता है, अतः वहाँ तक कर्मों के स्थितिबन्ध की स्थिति है और दसवें गुणस्थान तक के जीव सकषाय और ग्यारहवें से चौदहवें-उपशान्तमोह, क्षीणमोह, सयोगिकेवली, अयोगिकेवली गुणस्थान तक के जीव अकषाय कहे जाते हैं । आठ कर्मों में से एक वेदनीय कर्म ही ऐसा है जो
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