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चौथा कर्मग्रन्थ
तथा मति- अज्ञान, श्रुत- अज्ञान और विभङ्गज्ञान, ये आठ साकार (विशेष) उपयोग हैं || ११||
भावार्थ- (१) स्त्री के संसर्ग की इच्छा 'पुरुषवेद', (२) पुरुष के संसर्ग करने की इच्छा 'स्त्रीवेद' और (३) स्त्री-पुरुष दोनों संसर्ग की इच्छा 'नपुंसकवेद' है। '
१.
यह लक्षण भाववेद का है। द्रव्यवेद का निर्णय बाहरी चिह्नों से किया जाता हैपुरुष के चिह्न, दाढ़ी-मूँछ आदि हैं। स्त्री के चिह्न, डाढ़ी-मूँछ का अभाव तथा स्तन आदि हैं। नपुंसक में स्त्री-पुरुष दोनों के कुछ-कुछ चिह्न होते हैं। यही बात प्रज्ञापना - भाषापद की टीका में कही हुई है'योनिर्मृदुत्वमस्थैर्ये, मुग्धता क्लीबता स्तनौ ।
पुंस्कामितेति लिङ्गानि सप्त स्त्रीत्वे प्रचक्षते । । १ । । मेहनं खरता दायें, शौण्डीर्ये श्मश्रु धृष्टता । स्त्रीकामितेति लिङ्गानि सप्त पुंस्त्वे प्रचक्षते । । २ । । स्तनादिश्मश्रकेशादि - भावाभावसमन्वितम् ।
नपुंसकं बुधाः प्राहु, महानलसुदीपितम् । । ३॥
बाह्य चिह्न के सम्बन्ध में यह कथन बहुलता की अपेक्षा से है; क्योंकि कभीकभी पुरुष के चिह्न स्त्री में और स्त्री के चिह्न पुरुष में देखे जाते हैं। इस बात की सत्यता के लिये नीचे लिखे उद्धरण देखने योग्य हैं
'मेरे परम मित्र डाक्टर शिवप्रसाद, जिस समय कोटा हास्पिटल में थे (अब आपने ) स्वतन्त्र मेडिकल हाल खोलने के इरादे से नौकरी छोड़ दी है', अपनी आँखों देखा हाल इस प्रकार बयान करते हैं कि 'डॉक्टर मेकवाट साहब के जमाने में (कि जो उस समय कोटे में चीफ़ मेडिकल आफ़िसर थे) एक व्यक्ति पर मूर्छावस्था (अण्डर क्लोरोफ़ार्म) में शस्त्रचिकित्सा (औपरेशन) करनी थी, अतएव उसे मूर्छित किया गया; देखते क्या हैं कि उसके शरीर में स्त्री और पुरुष दोनों के चिह्न विद्यमान हैं। ये दोनों अवयव पूर्ण रूप से विकास पाए हुए थे। शस्त्रचिकित्सा किये जाने पर उसे होश में लाया गया, होश में आने पर उससे पूछने पर मालूम हुआ कि उसने उन दोनों अवयवों से पृथक्-पृथक् उनका कार्य लिया है, किन्तु गर्भादिक शंका के कारण उसने स्त्री विषयक अवयव से कार्य लेना छोड़ दिया है। यह व्यक्ति अब तक जीवित है।'
'सुनने में आया है और प्रायः सत्य है कि 'मेरवाड़ा डिस्ट्रिक्ट (Merwara District) में एक व्यक्ति के लड़का हुआ। उसने वयस्क होने पर एण्ट्रेन्स पास किया। इसी अर्से में माता-पिता ने उसका विवाह भी कर दिया, क्योंकि उसके पुरुष होने में किसी प्रकार की शंका तो थी नहीं; किन्तु विवाह होने पर मालूम हुआ कि वह पुरुषत्व के विचार से सर्वथा अयोग्य है। अतएव डाक्टरी जाँच करवाने पर मालूम हुआ कि वह वास्तव में स्त्री है और स्त्रीचिह्न के ऊपर पुरुष चिह्न नाम मात्र को बन गया है - इसी कारण वह चिह्न निरर्थक है-अतएव डाक्टर द्वारा उस कृत्रिम चिह्न को दूर कर देने पर उसका शुद्ध स्त्री स्वरूप प्रकट हो गया और उन दोनों स्त्रियों (पुरुष रूपधारी स्त्री और उसकी विवाहिता स्त्री) की एक ही व्यक्ति से शादी कर दी गई।' यह स्त्री कुछ समय पहिले तक जीवित बतलाई जाती है।'
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मानव - सन्ततिशास्त्र,
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