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________________ जीवस्थान-अधिकार ७. उदयस्थान। आठ कर्म का उदयस्थान, पहले से दसवें तक दस गुणस्थानों में रहता है। इसकी स्थिति, अभव्य की अपेक्षा से अनादि-अनन्त और भव्य की अपेक्षा से अनादि-सान्त है। परन्तु उपशम-श्रेणि से गिरे हुए भव्य की अपेक्षा से, उसकी स्थिति सादि-सान्त है। उपशम-श्रेणि से गिरने के बाद फिर से अन्तर्मुहूर्त में श्रेणि की जा सकती है; यदि अन्तर्मुहूर्त न की जा सकी तो अन्त में कुछ-कम अर्धपुद्गल-परावर्त के बाद अवश्य की जाती है। इसलिये आठ के उदयस्थान की सादि-सान्त स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त-प्रमाण और उत्कृष्ट देश-ऊन (कुछ कम) अर्धपुद्गल परावर्त्त-प्रमाण समझनी चाहिये। सात का उदयस्थान, ग्यारहवें और बारहवें गुणस्थान में पाया जाता है। इस उदयस्थान की स्थिति, जघन्य एक समय की और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त की मानी जाती है। जो जीव ग्यारहवें गुणस्थान में एक समय मात्र रह कर मरता है और अनुत्तरविमान में पैदा होता है, वह पैदा होते ही आठ कर्म के उदय का अनुभव करता है; इस अपेक्षा से सात के उदय स्थान की जघन्य स्थिति समय-प्रमाण कही गई है। जो जीव, बारहवें गणस्थान को पाता है, वह अधिक से अधिक उस गुणस्थान की स्थिति तक–अन्तर्मुहूर्त तक के सात कर्म के उदय का अनुभव करता है, पीछे अवश्य तेरहवें गुणस्थान को पाकर चार कर्म के उदय का अनुभव करता है; इस अपेक्षा से सात के उदयस्थान की उत्कृष्ट स्थिति अन्तर्मुहूर्त-प्रमाण कही गई है। चार का उदयस्थान, तेरहवें और चौदहवें गुणस्थान में पाया जाता है; क्योंकि इन दो गुणस्थानों में अघातिकर्म के अतिरिक्त अन्य किसी कर्म का उदय नहीं रहता। इस उदयस्थान की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट, देश-ऊन करोड़ पूर्व वर्ष की है। ८. उदीरणास्थान। आठ का उदीरणास्थान, आयु की उदीरणा के समय होता है। आयु की उदीरणा पहले छह गुणस्थानों में होती है। अतएव यह उदीरणास्थान इन्हीं गुणस्थानों में पाया जाता है। ___ सात का उदीरणास्थान,- उस समय होता है जिस समय कि आयु की उदीरणा रुक जाती है। आयु की उदीरणा तब रुक जाती है, जब वर्तमान आयु आवलिका-प्रमाण शेष रह जाती है। वर्तमान आयु की अन्तिम आवलिका के १. एक मुहूर्त के १, ६७, ७७, २१६ वें भाग को 'आवलिका' कहते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001895
Book TitleKarmagrantha Part 4 Shadshitik
Original Sutra AuthorDevendrasuri
AuthorSukhlal Sanghavi
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2009
Total Pages290
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size13 MB
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