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________________ ३० चौथा कर्मग्रन्थ तथा उत्कृष्ट स्थिति दसवें गुणस्थान की स्थिति के बराबर- - जघन्य एक समय की और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त की — समझनी चाहिये। एक कर्म का बन्धस्थान ग्यारहवें, बारहवें और तेरहवें, तीन गुणस्थानों में होता है। इसका कारण यह है कि इन गुणस्थानों के समय सातावेदनीय के अतिरिक्त अन्य कर्म का बन्ध नहीं होता। ग्यारहवें गुणस्थान की जघन्य स्थिति एक समय की और तेरहवें गुणस्थान की उत्कृष्ट स्थिति नौ वर्ष कम करोड़ पूर्व वर्ष की है। अतएव इस बन्धस्थान की स्थिति, जघन्य समय मात्र की और उत्कृष्ट नौ वर्ष - कम करोड़ पूर्व वर्ष की समझनी चाहिये । ६. सत्तास्थान । तीन सत्तास्थानों में से आठ का सत्तास्थान, पहले ग्यारह गुणस्थानों में पाया जाता है। इसकी स्थिति, अभव्य की अपेक्षा से अनादि अनन्त और भव्य की अपेक्षा से अनादि - सान्त है। इसका कारण यह है कि अभव्य की कर्म-परम्परा का जैसे आदि नहीं है, वैसे अन्त भी नहीं है; पर भव्य की कर्म-परम्परा के विषय में ऐसा नहीं है; उसका आदि तो नहीं है, किन्तु अन्त होता है। · सात का सत्तास्थान केवल बारहवें गुणस्थान में होता है। इस गुणस्थान की जघन्य या उत्कृष्ट स्थिति अन्तर्मुहूर्त की मानी जाती है। अतएव सात के सत्तास्थान की स्थिति उतनी समझनी चाहिये । इस सत्तास्थान में मोहनीय को छोड़कर सात कर्मों का समावेश है। चार का सत्तास्थान तेरहवें और चौदहवें गुणस्थान में पाया जाता है; क्योंकि इन दो गुणस्थानों में चार अघातिकर्म की ही सत्ता शेष रहती है। इन दो गुणस्थानों को मिलाकर उत्कृष्ट स्थिति नौ वर्ष सात मास-कम करोड़ पूर्व प्रमाण है। अतएव चार के सत्तास्थान की उत्कृष्ट स्थिति उतनी समझनी चाहिये। उसकी जघन्य स्थिति तो अन्तर्मुहूर्त्त प्रमाण है। १. अत्यन्त सूक्ष्म क्रियावाला अर्थात् सबसे जघन्य गतिवाला परमाणु जितने काल में अपने आकाश-प्रदेश से अनन्तर आकाश-प्रदेश में जाता है, वह काल, 'समय' कहलाता है । - तत्त्वार्थ अ. ४, सू. १५ का भाष्य । २. चौरासी लक्ष वर्ष का एक पूर्वाङ्ग और चौरासी लक्ष पूर्वाङ्ग का एक 'पूर्व' होता है। - तत्त्वार्थ अ. ४, सू. १५ का भाष्य । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001895
Book TitleKarmagrantha Part 4 Shadshitik
Original Sutra AuthorDevendrasuri
AuthorSukhlal Sanghavi
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2009
Total Pages290
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size13 MB
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