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________________ चौथा कर्मग्रन्थ समय पहला, दूसरा, चौथा, पाँचवाँ और छठा, ये पाँच गुणस्थान पाये जा सकते हैं; दूसरे नहीं। अतएव सात के उदीरणास्थान का सम्भव, इन पाँच गुणस्थानों में समझना चाहिये। तीसरे गुणस्थान में सात का उदीरणास्थान नहीं होता, क्योंकि आवलिका-प्रमाण आयु शेष रहने के समय, इस गुणस्थान का सम्भव ही नहीं है। इसलिये इस गुणस्थान में आठ का ही उदीरणा स्थान माना जाता है। छः का उदीरणास्थान सातवें गुणस्थान से लेकर दसवें गुणस्थान की एक आवलिका-प्रमाण स्थिति बाकी रहती है, तब तक पाया जाता है; क्योंकि उस समय आयु और वेदनीय, इन दो की उदीरणा नहीं होती। दसवें गुणस्थान की अन्तिम आवलिका, जिसमें मोहनीय की भी उदीरणा रुक जाती है, उससे लेकर बारहवें गुणस्थान की अन्तिम आवलिका पर्यन्त पाँच का उदीरणास्थान होता है। बारहवें गणस्थान की अन्तिम आवलिका, जिसमें ज्ञानावरण, दर्शनावरण और अन्तराय, तीन कर्म की उदीरणा रुक जाती है, उससे लेकर तेरहवें गणस्थान के अन्त पर्यन्त दो का उदीरणा-स्थान होता है। चौदहवें गुणस्थान में योग न होने के कारण उदय रहने पर भी नाम-गोत्र की उदीरणा नहीं होती। __उक्त सब बन्धस्थान, सत्तास्थान आदि पर्याप्त संज्ञी के हैं; क्योंकि चौदहों गुणस्थानों का अधिकारी वही है। किस-किस गुणस्थान में कौन-कौन-सा बन्धस्थान, सत्तास्थान, उदयस्थान और उदीरणास्थान है; इसका विचार आगे गा. ५९ से ६२ तक में है।।८।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001895
Book TitleKarmagrantha Part 4 Shadshitik
Original Sutra AuthorDevendrasuri
AuthorSukhlal Sanghavi
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2009
Total Pages290
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size13 MB
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