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________________ प्रस्तावना xxiii योगवासिष्ठ, पातञ्जलयोग आदि ग्रन्थों में आत्मा की भूमिकाओं पर अच्छा विचार है। जैनशास्त्र में मिथ्यादृष्टि या बहिरात्मा के नाम से अज्ञानी जीव का लक्षण बतलाया गया है कि जो अनात्मा में अर्थात् आत्म-भिन्न जड़तत्त्व में आत्म-बुद्धि करता है, वह मिथ्यादृष्टि या बहिरात्मा' है। योगवासिष्ठ में तथा पातञ्जलयोगसूत्र में अज्ञानी जीव का वही लक्षण है। जैनशास्त्र में मिथ्यात्वमोहनीय का संसारबुद्धि और दुःखरूप फल वर्णित है। वही बात योगवासिष्ठ के निर्वाणप्रकरण' में अज्ञान के फलरूप से कही गई है। (२) योगवासिष्ठ निर्वाणप्रकरण पूर्वार्ध में अविद्या से तृष्णा और तृष्णा से दुःख का अनुभव तथा विद्या से १. तत्र मिथ्यादर्शनोदयवशीकृतो मिथ्यादृष्टिः।। (तत्त्वार्थ-अध्याय ९, सू. १, राजवार्तिक १२) आत्मधिया समुपात्तकायादिः कीर्त्यतेऽत्र बहिरात्मा। कायादेः समधिष्ठायको भवत्यन्तरात्मा तु।।७।। (योगशास्त्र, प्रकाश १२) निर्मलं स्फटिकस्येव सहज रूपमात्मनः। अध्यस्तोपाधिसम्बन्धो जडस्तत्र विमुह्यति।।६।। (ज्ञानसार, मोहाष्टक) नित्यशुच्यात्मताख्यार्तिनित्याशुच्यनात्मसु। अवि द्यातत्त्वधीविद्या, योगाचार्य: प्रकीर्तिताः।।१॥ (ज्ञानसार, विद्याष्टक) भ्रमवाटी बहिर्दृष्टिभ्रंमच्छाया तदीक्षणम्। अभ्रान्तस्तत्त्वदृष्टिस्तु नास्यां शेते सुखाशया।।२।। (ज्ञानसार, तत्त्वदृष्टि-अष्टक) २. यस्याऽज्ञानात्मनोज्ञस्य, देह एवाऽऽत्मभावना। उदितेति रुषैवाक्ष-रिपवोऽभिभवन्ति तम्।।३।। (निर्वाण-प्रकरण, पूर्वार्ध, सर्ग ६) ३. अनित्याऽशुचिदुःखाऽनात्मसु नित्यशुचिसुखात्मख्यातिरविद्या। (पातञ्जलयोगसूत्र, साधन-पाद, सूत्र ५) ४. समुदायावयवयोर्बन्धहेतुत्वं वाक्यपरिसमाप्तेर्वैचित्र्यात्। ____ (तत्त्वार्थ, अध्याय ९, सू. १, वार्तिक ३१) विकल्पचषकैरात्मा, पीतमोहासवोऽह्ययम्। भवोच्चतालमुत्तालप्रपञ्चमधितिष्ठति।।५।। (ज्ञानसार, मोहाष्टक) अज्ञानात्प्रसृत्ता यस्माज्जगत्पर्णपरम्परा:। यस्मिस्तिष्ठन्ति राजन्ते विशन्ति विलसन्ति चा॥५३॥' अपातमात्रमधुरत्वमनर्थसत्त्वमाधन्तवत्त्वमखिलस्थितिभङ्गुरत्वम्। अज्ञानशाखिन इति प्रसृत्तानि रामनानाकृतीनि विपुलानि फलानि तानि (६१, पूर्वार्द, सर्ग ६) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001895
Book TitleKarmagrantha Part 4 Shadshitik
Original Sutra AuthorDevendrasuri
AuthorSukhlal Sanghavi
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2009
Total Pages290
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size13 MB
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