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________________ चौथा कर्मग्रन्थ संमूच्छिम मनुष्यों की उत्पत्ति के क्षेत्र और स्थान तथा उनकी आयु और योग्यता जानने के लिये आगमिक प्रमाण पृ. ७२ पर देखें, नोट । २०० स्वर्ग से च्युत होकर देव किन स्थानों में पैदा होते हैं ? इसका कथन । पृ. ७३ पर देखें, नोट । चक्षुर्दशन में कोई तीन ही जीवस्थान मानते हैं और कोई छः | यह मतभेद इन्द्रियपर्याप्ति की भिन्न-भिन्न व्याख्याओं पर निर्भर है। इसका सप्रमाण कथन पृ. ७६ पर है, नोट । कर्मग्रन्थ में असंज्ञी पञ्चेन्द्रिय को स्त्री और पुरुष, ये दो वेद माने हैं और सिद्धान्त में एक नपुंसक, सो किस अपेक्षा से ? इसका प्रमाण पृ. ७८ पर देखें, नोट । अज्ञान-त्रिक में दो गुणस्थान माननेवालों का तथा तीन गुणस्थान माननेवालों का आशय क्या है ? इसका स्पष्टीकरण पृ. ८२ पर देखें | कृष्ण आदि तीन अशुभ लेश्याओं में छह गुणस्थान इस कर्मग्रन्थ में माने हुए हैं और पञ्चसंग्रह आदि ग्रन्थों में उक्त तीन लेश्याओं में चार गुणस्थान माने हैं । सो किस अपेक्षा से? इसका प्रमाणपूर्वक प्रस्तुतीकरण पृ. ८८ पर देखें । जब मरण के समय ग्यारह गुणस्थान पाये जाने का कथन है, तब विग्रहगति में तीन ही गुणस्थान कैसे माने गये ? इसका प्रामाणिक विवरण पृ. ८९ है । स्त्रीवेद में तेरह योगों का तथा वेद सामान्य में बारह उपयोगों का और नौ गुणस्थानों का जो कथन है, सो द्रव्य और भावों से किस-किस प्रकार के वेद को लेने से घट सकता है ? इसका विवेचन पृ. ९७ पर है, नोट । उपशम सम्यक्त्व के योगों में औदारिकमिश्रयोग का परिगणन है, जो किस तरह सम्भव है ? इसका विवरण पृ. ९८ पर है। मार्गणाओं में जो अल्प- बहुत्व का विचार कर्मग्रन्थ में है, वह आगम आदि किन प्राचीन ग्रन्थों में है ? इसकी सूचना पृ. ११५ पर दी गई है, नोट । काल की अपेक्षा क्षेत्र की सूक्ष्मता का सप्रमाण कथन पृ. १७७ पर है, नोट । शुक्ल, पद्म और तेजोलेश्यावालों के संख्यातगुण अल्प-बहुत्व पर शङ्कासमाधान तथा उस विषय में टबाकार का मन्तव्य पृ. १३० पर है, नोट । तीन योगों का स्वरूप तथा उनके बाह्य आभ्यन्तर कारणों का स्पष्ट कथन और योगों की संख्या के विषय में शङ्का समाधान तथा द्रव्यमन, द्रव्यवचन और शरीर का स्वरूप पृ. १३४, नोट । For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.001895
Book TitleKarmagrantha Part 4 Shadshitik
Original Sutra AuthorDevendrasuri
AuthorSukhlal Sanghavi
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2009
Total Pages290
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size13 MB
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