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चौथा कर्मग्रन्थ
और उसमें विहार आदि का कालनियम कैसा है, इत्यादि उसके सम्बन्ध की बातें दोनों सम्प्रदाय में बहुत अंशों में समान हैं। पृ. ५९, नोट देखें।
क्षायिक सम्यक्त्व जिनकालिक मनुष्य को होता है, यह बात दोनों सम्प्रदाय को इष्ट है। पृ. ६६, नोट।
केवली में द्रव्यमन का सम्बन्ध दोनों सम्प्रदाय में इष्ट है। पृ. १०१, नोट
देखें।
मिश्रसम्यग्दृष्टि गुणस्थान में मति आदि उपयोगों की ज्ञान-अज्ञान उभयरूपता गोम्मटसार में भी है। पृ. १०९, नोट देखें।
गर्भज मनुष्यों की संख्या के सूचक उन्तीस अङ्क दोनों सम्प्रदाय में तुल्य हैं। पृ. ११७, नोट देखें।
इन्द्रियमार्गणा में द्वीन्द्रिय आदि का और कायमार्गणा में तेजकाय आदि का विशेषाधिकत्व दोनों सम्प्रदाय में समान इष्ट है। पृ. १२२, नोट देखें।
वक्रगति में विग्रहों की संख्या दोनों सम्प्रदाय में समान है। फिर भी श्वेताम्बरीय ग्रन्थों में कहीं-कहीं जो चार विग्रहों का मतान्तर पाया जाता है, वह दिगम्बरीय ग्रन्थों में देखने में नहीं आता। तथा वक्रगति का काल-मान दोनों सम्प्रदाय में तुल्य है। वक्रगति में अनाहारकत्व का काल मान, व्यवहार और निश्चय, दो दृष्टियों से विचारा जाता है। इनमें से व्यवहार-दृष्टि के अनुसार श्वेताम्बर-प्रसिद्ध तत्त्वार्थ में विचार है और निश्चय-दृष्टि के अनुसार दिगम्बर-प्रसिद्ध तत्त्वार्थ में विचार है। अतएव इस विषय में भी दोनों सम्प्रदाय का वास्तविक मतभेद नहीं है। पृ. १४३ देखें।
___ अवधिदर्शन में गुणस्थानों की संख्या के विषय में सैद्धान्तिक एक और कार्मग्रन्थिक दो, ऐसे जो तीन पक्ष हैं, उनमें से कार्मग्रन्थिक दोनों ही पक्ष दिगम्बरीय ग्रन्थों में मिलते हैं। पृ. १४६ देखें। __केवलज्ञानी में आहारकत्व, आहार का कारण असातावेदनीय का उदय और औदारिक पुद्गलों का ग्रहण, ये तीनों बातें दोनों सम्प्रदाय में समान मान्य हैं। पृ. १४८ देखें।
गुणस्थान में जीवस्थान का विचार गोम्मटसार में कर्मग्रन्थ की अपेक्षा कुछ भिन्न जान पड़ता है। पर वह अपेक्षाकृत होने से वस्तुत: कर्मग्रन्थ के समान ही है। पृ. १६१, नोट देखें।
गुणस्थान में उपयोग की संख्या कर्मग्रन्थ और गोम्मटसार में तुल्य है। पृ. १६७, नोट देखें।
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