SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 246
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ परिशिष्ट परिशिष्ट नं. १ श्वेताम्बरीय तथा दिगम्बरीय सम्प्रदाय के (कुछ) समान तथा असमान मन्तव्य १९३ (क) निश्चय और व्यवहार -दृष्टि से जीव शब्द की व्याख्या दोनों सम्प्रदाय में है। पृ. ४ पर देखें। इस सम्बन्ध में जीवकाण्ड का 'प्राणाधिकार' प्रकरण और उसकी टीका देखने योग्य है। तुल्य मार्गणास्थान शब्द की व्याख्या दोनों सम्प्रदाय में समान है । पृ. ४ पर देखें | गुणस्थान शब्द की व्याख्या - शैली कर्मग्रन्थ और जीवकाण्ड में भिन्न- सी है, पर उसमें तात्त्विक अर्थ भेद नहीं है। पृ. ४ पर देखें । उपयोग का स्वरूप दोनों सम्प्रदायों में समान माना गया है । पृ. ५ पर देखें | कर्मग्रन्थ में अपर्याप्त संज्ञी को तीन गुणस्थान माने हैं, किन्तु गोम्मटसार में पाँच माने हैं। इस प्रकार दोनों का संख्याविषयक मतभेद है, तथापि वह अपेक्षाकृत है, इसलिये वास्तविक दृष्टि से उसमें समानता ही है। पृ. १२ पर देखें। केवलज्ञानी के विषय में संज्ञित्व तथा असंज्ञित्व का व्यवहार दोनों सम्प्रदाय के शास्त्रों में समान है। पृ. १३ पर देखें। वायुकाय के शरीर की ध्वजाकारता दोनों सम्प्रदाय को मान्य है। पृ. २० पर देखें। छाद्मस्थिक उपयोगों का काल - मान अन्तर्मुहूर्त - प्रमाण दोनों सम्प्रदायों को मान्य है। पृ. २०, नोट देखें। भावलेश्या के सम्बन्ध में स्वरूप, दृष्टान्त आदि अनेक बातें दोनों सम्प्रदाय तुल्य हैं। पृ. ३३। में चौदह मार्गणाओं का अर्थ दोनों सम्प्रदाय में समान हैं तथा उनकी मूल गाथाएँ भी एक-सी हैं। पृ. ४७, नोट देखें। सम्यक्त्व की व्याख्या दोनों सम्प्रदाय में तुल्य है। पृ. ५०, नोट । व्याख्या कुछ भिन्न-सी होने पर भी आहार के स्वरूप में दोनों सम्प्रदाय का तात्त्विक भेद नहीं है। श्वेताम्बर - ग्रन्थों में सर्वत्र आहार के तीन भेद हैं और दिगम्बर-ग्रन्थों में कहीं छः भेद भी मिलते हैं। पृ. ५०, नोट देखें। परिहारविशुद्धसंयम का अधिकारी कितनी उम्र का होना चाहिये, उसमें वह संयम किसके समीप ग्रहण किया जा सकता कितना ज्ञान आवश्यक है और For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.001895
Book TitleKarmagrantha Part 4 Shadshitik
Original Sutra AuthorDevendrasuri
AuthorSukhlal Sanghavi
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2009
Total Pages290
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy