________________
१४८
चौथा कर्मग्रन्थ
___ पहला--कोई छः पुरुष जम्बूफल (जामुन) खाने की इच्छा करते हुये चले जा रहे थे, इतने में जम्बूवृक्ष को देख उनमें से एक पुरुष बोला-'लीजिये, जम्बवृक्ष तो आ गया। अब फलों के लिये ऊपर चढ़ने की अपेक्षा फलों से लदी हुई बड़ी-बड़ी शाखावाले इस वृक्ष को काट गिराना ही अच्छा है।'
यह सुनकर दूसरे ने कहा—'वृक्ष काटने से क्या लाभ? केवल शाखाओं को काट दो।'
तीसरे पुरुष ने कहा—'यह भी ठीक नहीं, छोटी-छोटी शाखाओं के काट लेने से भी तो काम निकाला जा सकता है।'
चौथे ने कहा- 'शाखाएँ भी क्यों काटना? फलों के गुच्छों को तोड़ लीजिये।'
पाँचवाँ बोला— 'गुच्छों से क्या प्रयोजन। उनमें से कुछ फलों को ही लेना अच्छा है।'
अन्त में छठे पुरुष ने कहा—'ये सब विचार निरर्थक हैं; क्योंकि हम लोग जिन्हें चाहते हैं, वे फल तो नीचे भी गिरे हये हैं, क्या उन्हीं से अपनी प्रयोजनसिद्धि नहीं हो सकती है?'
दूसरा--कोई छः पुरुष धन लूटने के इरादे से जा रहे थे। रास्ते में किसी गाँव को पाकर उनमें से एक बोला-'इस गाँव को तहस-नहस कर दो-मनुष्य, पशु, पक्षी, जो कोई मिले, उन्हें मारो और धन लूट लो।'
यह सुनकर दूसरा बोला-'पशु, पक्षी आदि क्यों मारना? केवल विरोध करनेवाले मनुष्यों को मारो।'
तीसरे ने कहा- 'बेचारी स्त्रियों की हत्या क्यों करना? पुरुषों को मार दो।' चौथे ने कहा-'सब पुरुषों को नहीं; जो सशस्त्र हों, उन्हीं को मारो।'
पाँचवें ने कहा- 'जो सशस्त्र पुरुष भी विरोध नहीं करते, उन्हें क्यों मारना।' ___अन्त में छठे पुरुष ने कहा-'किसी को मारने से क्या लाभ? जिस प्रकार से धन अपहरण किया जा सके, उस प्रकार से उसे उठा लो और किसी को मारो मत। एक तो धन लूटना और दूसरे उसके मालिकों को मारना, यह ठीक नहीं।'
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org