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चौथा कर्मग्रन्थ
जघन्य या उत्कृष्ट संख्या का मतलब किसी एक नियत संख्या से ही है, पर मध्यम के विषय में यह बात नहीं। जघन्य और उत्कृष्ट संख्यात के बीच संख्यात इकाइयाँ हैं, जघन्य और उत्कृष्ट संख्यात के बीच असंख्यात इकाइयाँ हैं एवं जघन्य और उत्कृष्ट अनन्त के बीच अनन्त इकाइयाँ हैं, जो क्रमश: 'मध्यम संख्यात', 'मध्यम असंख्यात' और 'मध्यम अनन्त' कहलाती हैं।
शास्त्र में जहाँ कहीं अनन्तानन्त का व्यवहार किया गया है, वहाँ सब जगह मध्यम अनन्तानन्त से ही मतलब है।
(उपसंहार) इस प्रकरण का नाम 'सूक्ष्मार्थविचार' रक्खा है; क्योंकि इसमें अनेक सूक्ष्म विषयों पर विचार प्रगट किये गये हैं।।८०-८६।।
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