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________________ चौथा कर्मग्रन्थ 'गोम्मटसार' यह दिगम्बर सम्प्रदाय का कर्म-विषयक एक प्रतिष्ठित ग्रन्थ है, जो कि इस समय उपलब्ध है। यद्यपि वह श्वेताम्बरीय आगम तथा पञ्चसंग्रह की अपेक्षा बहुत अर्वाचीन है, फिर भी उसमें विषय-वर्णन, विषय-विभाग और प्रत्येक विषय के लक्षण बहुत स्फुट हैं। गोम्मटसार के 'जीवकाण्ड' और 'कर्मकाण्ड', ये मुख्य दो विभाग हैं। चौथे कर्मग्रन्थ का विषय जीवकाण्ड में ही है और वह इससे बहुत बड़ा है। यद्यपि चौथे कर्मग्रन्थ के सब विषय प्रायः जीवकाण्ड में वर्णित हैं, तथापि दोनों की वर्णन शैली बहुत अंशों में भिन्न है । iv जीवकाण्ड में मुख्य बीस प्ररूपणाएँ हैं: - १ गुणस्थान, १ जीवस्थान, १ पर्याप्ति, १ प्राण, १ संज्ञा, १४ मार्गणाएँ और १ उपयोग, कुल बीस । प्रत्येक प्ररूपण का उसमें बहुत विस्तृत और विशद वर्णन है । अनेक स्थलों में चौथे कर्मग्रन्थ के साथ उसका मतभेद भी है। इसमें सन्देह नहीं कि चौथे कर्मग्रन्थ के पाठकों के लिये जीवकाण्ड एक खास देखने की वस्तु है; क्योंकि इससे अनेक विशेष बातें मालूम हो सकती हैं। कर्म विषयक अनेक विशेष बातें जैसे श्वेताम्बरीय ग्रन्थों में लभ्य हैं, वैसे ही अनेक विशेष बातें दिगम्बरीय ग्रन्थों में भी लभ्य हैं। इस कारण दोनों सम्प्रदाय के विशेष जिज्ञासुओं को एक-दूसरे के समान विषयक ग्रन्थ अवश्य देखने चाहिए। इसी अभिप्राय से अनुवाद में उस उस विषय का साम्य और वैषम्य दिखाने के लिये जगह-जगह गोम्मटसार के अनेक उपयुक्त स्थल उद्धृत तथा निर्दिष्ट किये हैं। विषय प्रवेश जिज्ञासु लोग जब तक किसी भी ग्रन्थ के प्रतिपाद्य विषय का परिचय नहीं कर लेते तब तक उस ग्रन्थ के अध्ययन के लिये प्रवृत्ति नहीं करते। इस नियम के अनुसार प्रस्तुत ग्रन्थ के अध्ययन के निमित्त योग्य अधिकारियों की प्रवृत्ति कराने के लिये यह आवश्यक है कि शुरू में प्रस्तुत ग्रन्थ के विषय का परिचय कराया जाय। विषय का परिचय सामान्य और विशेष दो प्रकार से कराया जा सकता है। (क) ग्रन्थ किस तात्पर्य से बनाया गया है; उसका मुख्य विषय क्या है और वह कितने विभागों में विभाजित है; प्रत्येक विभाग से सम्बन्ध रखने वाले अन्य कितने-कितने और कौन-कौन विषय हैं; इत्यादि वर्णन करके ग्रन्थ के शब्दात्मक कलेवर के साथ विषय-रूप आत्मा के सम्बन्ध का स्पष्टीकरण कर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001895
Book TitleKarmagrantha Part 4 Shadshitik
Original Sutra AuthorDevendrasuri
AuthorSukhlal Sanghavi
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2009
Total Pages290
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size13 MB
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