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________________ प्रस्तावना iiii विषयसाम्य तथा क्रम-साम्य बराबर है। प्राचीन पर टीका, टिप्पणी, विवरण, उद्धार, भाष्य आदि व्याख्याएँ नवीन की अपेक्षा अधिक हैं। हाँ, नवीन पर, जैसे गुजराती टब्बे हैं, वैसे प्राचीन पर नहीं हैं। इस सम्बन्ध की विशेष जानकारी के लिये अर्थात् प्राचीन और नवीन पर कौन-कौन-सी व्याख्या किस-किस भाषा में और किसी-किस की बनाई हुई है, इत्यादि जानने के लिये पहले कर्मग्रन्थ के आरम्भ में जो कर्म विषयक साहित्य की तालिका दी है, उसे देख लेना चाहिए। चौथा कर्मग्रन्थ और आगम, पंचसंग्रह तथा गोम्मटसार ___ यद्यपि चौथे कर्मग्रन्थ का कोई-कोई (जैसे गुणस्थान आदि) वैदिक तथा बौद्ध साहित्य में नामान्तर तथा प्रकारान्तर से वर्णन किया हुआ मिलता है, तथापि उसकी समान कोटि का कोई खास ग्रन्थ उक्त दोनों सम्प्रदायों के साहित्य में दृष्टिगोचर नहीं हुआ। जैन-साहित्य श्वेताम्बर और दिगम्बर, दो सम्प्रदायों में विभक्त है। श्वेताम्बरसम्प्रदाय के साहित्य में विशिष्ट विद्वानों की कृति स्वरूप 'आगम' और 'पञ्चसंग्रह' ये प्राचीन ग्रन्थ ऐसे हैं, जिनमें कि चौथे कर्मग्रन्थ का सम्पूर्ण विषय पाया जाता है, या यों कहिये कि जिनके आधार पर चौथे कर्मग्रन्थ की रचना ही की गई है। यद्यपि चौथे कर्मग्रन्थ में और जितने विषय जिस क्रम से वर्णित हैं, वे सब उसी क्रम से किसी एक आगम तथा पञ्चसंग्रह के किसी एक भाग में वर्णित नहीं हैं, तथापि भिन्न-भिन्न आगम और पञ्चसंग्रह के भिन्न-भिन्न भाग में उसके सभी विषय लगभग मिल जाते हैं। चौथे कर्मग्रन्थ का कौन-सा विषय किस आगम में और पञ्चसंग्रह के किस भाग में आता है, इसकी सूचना प्रस्तुत अनुवाद में उस-उस विषय के प्रसंग में टिप्पणी के तौर पर यथासंभव कर दी गई है, जिससे कि प्रस्तुत ग्रन्थ के अभ्यासियों को आगम और पञ्चसंग्रह के कुछ उपयुक्त स्थल मालूम हों तथा मतभेद और विशेषताएँ ज्ञात हों। प्रस्तुत ग्रन्थ के अभ्यासियों के लिये आगम और पञ्चसंग्रह का परिचय करना लाभदायक है; क्योंकि उन ग्रन्थों के गौरव का कारण सिर्फ उनकी प्राचीनता ही नहीं है, बल्कि उनकी विषय-गम्भीरता तथा विषयस्फुटता भी उनके गौरव का कारण है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001895
Book TitleKarmagrantha Part 4 Shadshitik
Original Sutra AuthorDevendrasuri
AuthorSukhlal Sanghavi
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2009
Total Pages290
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size13 MB
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