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________________ प्रस्तावना देना अर्थात् ग्रन्थ का प्रधान और गौण विषय क्या-क्या है तथा वह किस-किस क्रम से वर्णित है, इसका निर्देश कर देना, यह विषय का सामान्य परिचय है । (ख) लक्षण द्वारा प्रत्येक विषय का स्वरूप बतलाना, यह उसका विशेष परिचय है। V प्रस्तुत ग्रन्थ के विषय का विशेष परिचय तो उस-उस विषय के वर्णन - स्थान में ही यथासम्भव मूल में किंवा विवेचन में करा दिया गया है। अतएव इस जगह विषय का सामान्य परिचय कराना ही आवश्यक एवं उपयुक्त है। प्रस्तुत ग्रन्थ प्ररूपण का तात्पर्य यह है कि सांसारिक जीवों की भिन्नभिन्न अवस्थाओं का वर्णन करके यह बतलाया जाय कि अमुक-अमुक अवस्थायें औपाधिक, वैभाविक किंवा कर्म - कृत होने से अस्थायी तथा हेय हैं और अमुकअमुक अवस्थायें स्वाभाविक होने के कारण स्थायी तथा उपादेय हैं। इनके अतिरिक्त यह भी बतलाना है कि, जीव का स्वभाव प्रायः विकास करने का है । अतएव वह अपने स्वभाव के अनुसार किस प्रकार विकास करता है और तद्वारा औपाधिक अवस्थाओं को त्याग कर किस प्रकार स्वाभाविक शक्तियों का आविर्भाव करता है। इस उद्देश्य की सिद्धि के लिये प्रस्तुत ग्रन्थ में मुख्यतया पाँच विषय वर्णन किये हैं (१) जीवस्थान, (२) मार्गणास्थान, (३) गुणस्थान, (४) भाव और (५) संख्या | इनमें से प्रथम मुख्य तीन विषयों के साथ अन्य विषय भी वर्णित हैं— जीवस्थान में (१.) गुणस्थान, (२) योग, (३) उपयोग, (४) लेश्या, (५) बन्ध, (६) उदय, (७) उदीरणा और (८) सत्ता ये आठ विषय वर्णित हैं। मार्गणास्थान में (१) जीवस्थान, (२) गुणस्थान, (३) योग, (४) उपयोग, (५) लेश्या और (६) अल्प-बहुत्व, ये छः विषय वर्णित हैं तथा गुणस्थान में (१) जीवस्थान, (२) योग, (३) उपयोग, (४) लेश्या, (५) बन्ध- हेतु, (६) बन्ध, (७) उदय, (८) उदीरणा, (९) सत्ता और (१०) अल्प - बहुत्व, ये दस विषय वर्णित हैं। पिछले दो विषयों का अर्थात् भाव और संख्या का वर्णन अन्य विषय के वर्णन से मिश्रित नहीं है, अर्थात् उन्हें लेकर अन्य कोई विषय वर्णित नहीं किया है। Jain Education International इस तरह देखा जाय तो प्रस्तुत ग्रन्थ के शब्दात्मक कलेवर के मुख्य पाँच हिस्से हो जाते हैं। For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001895
Book TitleKarmagrantha Part 4 Shadshitik
Original Sutra AuthorDevendrasuri
AuthorSukhlal Sanghavi
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2009
Total Pages290
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size13 MB
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