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________________ गुणस्थानाधिकार १२९ इस प्रकार जो छः सांनिपातिक-भाव संभववाले हैं, इनके ऊपर लिखे अनुसार स्थान -भेद से सब मिलाकर पन्द्रह भेद होते हैं ।। ६७-६८ ।। कर्म के और धर्मास्तिकाय आदि अजीवद्रव्यों के भाव । मोहेव समो मीसो, चउघाड़सु अट्ठसंमसु च सेसा । धम्माइ पारिणामय, भावे खंधा उदइए - वि ।। ६९ ।। शेषाः । मोह एव शमो मिश्रश्चतुर्घातिष्वष्टकर्मसु च धर्मादि पारिणामिकभावे स्कन्धा उदयेऽपि ।। ६९ ।। अर्थ - औपशमिक-भाव मोहनीयकर्म के ही होता है। मिश्र ( क्षायोपशमिक) भाव चार घातिकर्मों के ही होता है। शेष तीन ( क्षायिक, पारिणामिक और औदायिक) भाव आठों कर्म के होते हैं। धर्मास्तिकाय आदि अजीवद्रव्य के पारिणामिक - भाव हैं, किन्तु पुद्गल - स्कन्ध के औदयिक और पारिणामिक, ये दो भाव हैं ॥६९॥ भावार्थ - कर्म के सम्बन्ध में औपशमिक आदि भावों का मतलब उसकी अवस्था - विशेषों से है । जैसे - कर्म की उपशम- अवस्था उसका औपशमिक-भाव, क्षयोपशम अवस्था क्षायोपशमिक-भाव, क्षय अवस्था क्षायिक-भाव, उदयअवस्था औदयिक भाव और परिणमन- अवस्था पारिणामिक-भाव‍ है। उपशम-अवस्था मोहनीयकर्म के अतिरिक्त अन्य कर्मों की नहीं होती; इसलिये औपशमिक-भाव मोहनीयकर्म का ही कहा गया है। क्षयोपशम चार १. कर्म के भाव, पञ्चसंग्र- द्वा. ३ की २५वीं गाथा में वर्णित है। २. औपशमिक शब्द के दो अर्थ हैं (१) कर्म की उपशम आदि अवस्थाएँ ही औपशमिक आदि भाव हैं। यह, अर्थ कर्म के भावों में लागू पड़ता है। (२) कर्म की उपशम आदि अवस्थाओं से होनेवाले पर्याय औपशमिक आदि भाव हैं। यह अर्थ, जीव के भावों में लागू पड़ता है, जो ६४ और ६६वीं गाथा में बतलाय हैं। ३. पारिणामिक शब्द का 'स्वरूप' परिणमन, यह एक ही अर्थ है, जो सब द्रव्यों में लागू पड़ता है। जैसे— कर्म का जीव- प्रदेशों के साथ विशिष्ट सम्बन्ध होना या द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव आदि भिन्न-भिन्न निमित्त पाकर अनेक रूप में संक्रान्त (परिवर्तित ) होते रहना कर्म का पारिणामिक-भाव है। जीव का परिणमन जीवत्वरूप में, भव्यत्व रूप में या अभव्यत्वरूप में स्वतः बने रहना है। इसी तरह धर्मस्तिकाय आदि द्रव्यों में समझ लेना चाहिये । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001895
Book TitleKarmagrantha Part 4 Shadshitik
Original Sutra AuthorDevendrasuri
AuthorSukhlal Sanghavi
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2009
Total Pages290
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size13 MB
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