SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 181
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १२८ पञ्च- संयोग का एक भेद १. औपशमिक + क्षायिक + क्षायोपशमिक + औदयिक + पारिणामिक सब मिलाकर सांनिपातिक-भाव के छब्बीस भेद हुए । इनमें से जो छह भेद जीवों में पाये जाते हैं, उन्हीं को इन दो गाथाओं में दिखाया है। चौथा कर्मग्रन्थ त्रिक-संयोग के उक्त दस भेदों में से दसवाँ भेद, जो क्षायोपशमिक, पारिणामिक और औदयिक के मेल से बना है, वह चारों गति में पाया जाता है। वह इस प्रकार - चारों गति के जीवों में क्षायोपशमिक-भाव भावेन्द्रिय आदिरूप, पारिणामिक-भाव जीवत्व आदिरूप और औदयिक भाव कषाय आदिरूप है। इस तरह इस त्रिक- संयोग के गति रूप स्थान भेद से चार भेद हुए। चतु:संयोग के उक्त पाँच भेदों में से पाँचवाँ भेद चारों गति में पाया जाता है; इसलिये इसके भी स्थान भेद से चार भेद होते हैं। चारों गति में क्षायिकभाव क्षायिक सम्यक्त्वरूप, क्षायोपशमिक-भाव भावेन्द्रिय आदिरूप, पारिणामिक-भाव जीवत्व आदिरूप और औदयिक भाव कषाय आदिरूप है। चतुः संयोग के पाँच भेदों में से चौथा भेद चारों गति में पाया जाता है। चारों गति में औपशमिक - भाव सम्यक्त्वरूप, क्षायोपशमिक भाव भावेन्द्रिय आदि रूप, पारिणामिक-भाव जीवत्व आदिरूप और औदयिक भाव कषाय आदि रूप समझना चाहिये। । इस चतुःसंयोग सांनिपातिक के भी गतिरूप स्थान-: -भेद से चार भेद हुए। त्रिक- संयोग के उक्त दस भेदों में से नौवाँ भेद सिर्फ भवस्थ केवलियों में होता है, इसलिये वह एक ही प्रकार का है। केवलियों में पारिणामिक-भाव जीवत्व आदि रूप, औदयिक भाव गति आदि रूप और क्षायिक भाव केवलज्ञान आदि रूप है। द्विक-संयोग के उक्त दस भेदों में से सातवाँ भेद सिर्फ सिद्ध जीवों में पाये जाने के कारण एक ही प्रकार का है। सिद्धों में पारिणामिक भाव जीवत्व आदि रूप और क्षायिक भाव केवलज्ञान आदि रूप है। पञ्च-संयोगरूप सांनिपातिक-भाव सिर्फ उपशमश्रेणि वाले मनुष्यों में होता है। इस कारण वह एक ही प्रकार का है; उपशमश्रेणि वाले मनुष्यों में क्षायिकभाव सम्यक्त्वरूप, औपशमिक - भाव चारित्र रूप, क्षायोपशमिक - भाव भावेन्द्रिय आदिरूप, पारिणामिक-भाव जीवत्व आदि रूप और औदयिक भाव लेश्या आदि रूप है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001895
Book TitleKarmagrantha Part 4 Shadshitik
Original Sutra AuthorDevendrasuri
AuthorSukhlal Sanghavi
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2009
Total Pages290
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy