SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 175
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १२२ चौथा कर्मग्रन्थ वाले चौदहवें गुणस्थानवालों से अनन्तगुण हैं। पहला, चौथा, पाँचवाँ, छठा, सातवाँ और तेरहवाँ, ये छह गुणस्थान लोक में सदा ही पाये जाते हैं, शेष आठ गुणस्थान कभी नहीं पाये जाते; पाये जाते हैं तब भी उनमें वर्तमान जीवों की संख्या कभी जघन्य और कभी उत्कृष्ट रहती है। ऊपर कहा हुआ अल्प-बहुत्व उत्कृष्ट संख्या की अपेक्षा से समझना चाहिये, जघन्य संख्या की अपेक्षा से नहीं; क्योंकि जघन्य संख्या के समय जीवों का प्रमाण उपर्युक्त अल्प-बहुत्व के विपरीत भी हो जाता है। उदाहरणार्थ, कभी ग्यारहवें गुणस्थान वाले बारहवें गुणस्थान वालों से अधिक भी हो जाते हैं। सारांश, उपर्युक्त अल्प-बहुत्व सब गुणस्थानों में जीवों के उत्कृष्ट-संख्यक पाये जाने के समय ही घट सकता है।।६३।। छ: भाव और उनके भेद' __(पाँच गाथाओं से) उवसमखयमीसोदय, परिणामा दुनवट्ठारइगवीसा। तिय भेय संनिवाइय, संमं चरणं पढमभावे।।६४।। उपशमक्षयमिश्रोदयपरिणामा द्विनवाष्टादशैकविंशतयः। त्रया भेदास्सांनिपातिकः, सम्यक्त्वं चरणं प्रथमभावे।। ६४।। अर्थ-औपशमिक, क्षायिक, मिश्र (क्षायोपशमिक), औदयिक और पारिणामिक, ये पाँच मूल भाव हैं। इनके क्रमश: दो, नौ, अठारह, इक्कीस और तीन भेद हैं। छठा भाव सांनिपातिक है। पहले (औपशमिक) भाव के सम्यक्त्व और चारित्र, ये दो भेद हैं।६४।। १. यह विचार, अनुयोगद्वार के ११३ से १२७ तक के पृष्ठ में; तत्त्वार्थ-अ. २ के १ से ७ तक के सूत्र में तथा सूत्रकृताङ्ग-नि.की १०७वीं गाथा तथा उसकी टीका में है। पञ्चसंग्रह द्वा. ३ की २६वी गाथा में तथा द्वा. २की ३री गाथा की टीका तथा सूक्ष्मार्थविचार-सारोद्धार की ५१ से ५७ तक की गाथाओं में भी इसका विस्तारपूर्वक वर्णन है। गोम्मटसार-कर्मकाण्ड में इस विषय का 'भावचूलिका' नामक एक खास प्रकरण है। भावों के भेद-प्रमेद के सम्बन्ध में उसकी ८१२ से ८१९ तक की गाथाएँ द्रष्टव्य हैं। आगे उसमें कई तरह के भङ्ग-बाल दिखाये हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001895
Book TitleKarmagrantha Part 4 Shadshitik
Original Sutra AuthorDevendrasuri
AuthorSukhlal Sanghavi
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2009
Total Pages290
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy