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________________ गुणस्थानाधिकार ११९ बाकी रहने के समय परभवीय आयु की स्थिति आवलिका से अधिक होती है तथापि अनुदयमान होने के कारण उसकी उदीरणा उक्त नियम के अनुसार नहीं होती। तीसरे गुणस्थान में आठ कर्म की ही उदीरणा मानी जाती है, क्योंकि इस गुणस्थान में मृत्यु नहीं होती। इस कारण आयु की अन्तिम आवलिका में, जब कि उदीरणा रुक जाती है, इस गुणस्थान का संभव ही नहीं है। सातवें, आठवें और नौवें गुणस्थान में छः कर्म की उदीरणा होती है, आयु और वेदनीय कर्म की नहीं। इसका कारण यह है कि इन दो कर्मों की उदीरणा के लिये जैसे अध्यवसाय आवश्यक है, उक्त तीन गुणस्थानों में अतिविशुद्धि होने के कारण वैसे अध्यवसाय नहीं होते। दसवें गुणस्थान में छ: अथवा पाँच कर्म की उदीरणा होती है। आयु और वेदनीय की उदीरणा न होने के समय छ: कर्म की तथा उक्त दो कर्म और मोहनीय की उदीरणा न होने के समय पाँच की समझना चाहिये। मोहनीय की उदीरणा दशम गुणस्थान की अन्तिम आवलिका में रुक जाती है। वह इसलिये कि उस समय उसकी स्थिति आवलिका-प्रमाण शेष रहती है। ग्यारहवें गुणस्थान में आयु, वेदनीय और मोहनीय की उदीरणा न होने के कारण पाँच की उदीरणा होती है। इस गुणस्थान में उदयमान न होने के कारण मोहनीय की उदीरणा निषिद्ध है।।६१।। (१०) गुणस्थानों में अल्प-बहुत्व' (दो गाथाओं से) पण दो खीण दु जोगी,-णुदीरगु अजोगि थोव उवसंता। संखगुण खीण, सुहुमा,-नियट्टीअपुव्व सम, अहिया।।६२।। पञ्च द्वे क्षीणो द्वे योग्यमुदीरकोऽयोगी स्तोका उपशान्ताः। संख्यगुणाः क्षीणाः सूक्ष्माऽनिवृत्यपूर्वाः समा अधिकाः।।६२।। अर्थ-क्षीणमोहगुणस्थान में पाँच या दो कर्म की उदीरणा है और सयोगिकेवली गुणस्थान में सिर्फ दो कर्म की। अयोगिकेवली गुणस्थान में उदीरणा का अभाव है। १. यह विषय, पञ्चसंग्रह-द्वार २की ८० और ८१वीं गाथा में है गोम्मटसार-जीव. की ६२२ से ६२८ तक की गाथाओं में कुछ भिन्नरूप से है। www.jainelibrary.org Jain Education International For Private & Personal Use Only
SR No.001895
Book TitleKarmagrantha Part 4 Shadshitik
Original Sutra AuthorDevendrasuri
AuthorSukhlal Sanghavi
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2009
Total Pages290
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size13 MB
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