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________________ ११८ चौथा कर्मग्रन्थ में मोहनीयकर्म सर्वथा नष्ट हो जाता है, इसलिये सत्ता और उदय दोनों सात कर्म के हैं। तेरहवें और चौदहवें गुणस्थान में सत्ता-गत और उदयमान चार अघातिकर्म ही हैं। सारांश यह है कि सत्तास्थान पहले ग्यारह गुणस्थानों में आठ का, बारहवें में सात का और तेरहवें और चौदहवें में चार का है तथा उदयस्थान पहले दस गुणस्थानों में आठ का, ग्यारहवें और बारहवें में सात का और तेरहवें और चौदहवें में चार का है।।६०।।। (९) गुणस्थानों में उदीरणा __ (दो गाथाओं से) उइरंति पमत्तंता, सगट्ठ मीसट्ट वेयआउ विणा। छग अपमत्ताइ तओ, छ पंच सुहुमो पणुवसंतो।।६१।। उदीरयन्ति प्रमत्तान्ताः, सप्ताष्टानि मिश्रोऽष्ट वेदायुषी विना। षट्कमप्रमत्तादयस्ततः, षट् पञ्च सूक्ष्मः पञ्चोपशान्तः।।६१।। अर्थ-प्रमत्तगुणस्थान पर्यन्त सात या आठ कर्म की उदीरणा होती है। मिश्रगुणस्थान में आठ कर्म की, अप्रमत्त, अपूर्वकरण और अनिवृत्तिबादर, इन तीन गुणस्थानों में वेदनीय तथा आयु के अतिरिक्त छह कर्म की; सूक्ष्मसंपराय गुणस्थान में छ: या पाँच कर्म की और उपशान्तमोह गुणस्थान में पाँच कर्म की उदीरणा होती है।।६१॥ भावार्थ-उदीरणा का विचार समझने के लिये यह नियम ध्यान में रखना चाहिये कि जो कर्म उदयमान हो उसी की उदीरणा होती है, अनुदयमान की नहीं। उदयमान कर्म आवलिका-प्रमाण शेष रहता है, उस समय उसकी उदीरणा रुक जाती है। तीसरे को छोड़ प्रथम से छठे तक के पहले पाँच गुणस्थानों में सात या आठ कर्म की उदीरणा होती है। आयु की उदीरणा न होने के समय सात कर्म की और होने के समय आठ कर्म की समझनी चाहिये। उक्त नियम के अनुसार आयु की उदीरणा उस समय रुक जाती है, जिस समय वर्तमान भव की आयु आवलिका-प्रमाण शेष रहती है। यद्यपि वर्तमान-भवीय आयु के आवलिकामात्र Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001895
Book TitleKarmagrantha Part 4 Shadshitik
Original Sutra AuthorDevendrasuri
AuthorSukhlal Sanghavi
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2009
Total Pages290
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size13 MB
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