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________________ गुणस्थानाधिकार ११७ तीसरे, आठवें और नौवें गुणस्थान में आयु का बन्ध न होने के कारण सात का ही बन्ध होता है। आठवें और नौवें गुणस्थान में परिणाम इतने अधिक विशुद्ध हो जाते हैं कि जिससे उनमें आयुबन्ध-योग्य परिणाम ही नहीं रहते और तीसरे गुणस्थान का स्वभाव ही ऐसा है कि उसमें आयु का बन्ध नहीं होता। दसवें गुणस्थान में आयु और मोहनीय का बन्ध न होने के कारण छह का बन्ध माना जाता है। परिणाम अतिविशुद्ध हो जाने से आयु का बन्ध और बादरकषायोदय न होने से मोहनीय का बन्ध उसमें वर्जित है। ग्यारहवें आदि तीन गुणस्थानों में केवल सातावेदनीय का बन्ध होता है; क्योंकि उनमें कषायोदय सर्वथा न होने से अन्य प्रकृतिओं का बन्ध असंभव है। सारांश यह है कि तीसरे; आठवें और नौवें गुणस्थान में सात का ही बन्धस्थान; पहले, दूसरे, चौथे, पाँचवें, छठे और सातवें गुणस्थान में सात का तथा आठ का बन्धस्थान; दसवें में छह का बन्धस्थान और ग्यारहवें, बारहवें और तेरहवें गुणस्थान में एक का बन्धस्थान होता है।।५९।। (७-८)-गुणस्थानों में सत्ता तथा उदय आसुहुमं संतुदये, अट्ठ वि मोह विणु सत्त खीणंमि। चउ चरिमदुगे अट्ठ उ, संते उवसंति सत्तुदए।।६।। आसूक्ष्मं सदुदयेऽष्टापि मोहं विना सप्त क्षीणे। चत्वारि चरमद्विकेऽष्ट तु, सत्युपशान्ते सप्तोदये।।६।। अर्थ-सूक्ष्मसंपराय गुणस्थान पर्यन्त आठ कर्म की सत्ता तथा आठ कर्म का उदय है। क्षीणमोह गुणस्थान में सत्ता और उदय, दोनों सात कर्मों के हैं। सयोगिकेवली और अयोगिकेवली-गुणस्थान में सत्ता और उदय सात कर्म के होते हैं।।६०॥ भावार्थ-पहले दस गुणस्थानों में सत्तागत तथा उदयमान आठ कर्म पाये जाते हैं। ग्यारहवें गुणस्थान में मोहनीयकर्म सत्तागत रहता है, पर उदयमान नहीं; इसलिये उसमें सत्ता आठ कर्म की और उदय सात कर्म का है। बारहवें गुणस्थान १. यह विचार, नन्दीसूत्र की ३री गाथा की श्रीमलयगिरिवृत्ति के ४१वें पृष्ठ पर है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001895
Book TitleKarmagrantha Part 4 Shadshitik
Original Sutra AuthorDevendrasuri
AuthorSukhlal Sanghavi
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2009
Total Pages290
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size13 MB
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